भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सरे-आग़ाज़ / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
<poem>
 
<poem>
 
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
 
शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सदा वरक़ जिस सुख़न-ए-कस्ता से ख़ूँ है
+
हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है
  
 
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
 
शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
  
 
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
 
शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह की मानिंद निगूँ है ।
+
जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।
 
</poem>
 
</poem>
 +
 +
 +
<h2>शब्दार्थ </h2>
 +
<references/>
 +
 +
 +
 +
1965

22:38, 19 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

शायद कभी अफ़्शा हो निगाहों पे तुम्हारी
हर सादा वरक़<ref>पत्ता </ref> जिस सुख़न-ए-कुश्ता से ख़ूँ है

शायद कभी इत गीत का परचम हो सरफ़राज़
जो आमद-ए-सरसर की तमन्ना में निगूँ है

शायद कभी इस दिल की कोई रग तुम्हें चुभ जाए
जो संग-ए-सर-ए-राह<ref>रास्ते का पत्थर </ref> की मानिंद निगूँ है ।


शब्दार्थ

<references/>


1965