भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कभी मेरी सुधि भी आयी है, / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-रत्नावली / गुलाब खंड…)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
यदि विवाह-बंधन थे झूठे!
 
यदि विवाह-बंधन थे झूठे!
 
कैसे वे मुझसे यों रूठे
 
कैसे वे मुझसे यों रूठे
झलक न दिखलायी है!
+
                झलक न दिखलायी है!
 
   
 
   
 
ज्यों ही शोध प्रिया की जानी
 
ज्यों ही शोध प्रिया की जानी
 
प्रभु ने लंका-जय की ठानी  
 
प्रभु ने लंका-जय की ठानी  
 
सखि! मेरी तो करुण कहानी   
 
सखि! मेरी तो करुण कहानी   
घर-घर में छायी है  
+
                  घर-घर में छायी है  
 
   
 
   
 
तन में भले भभूत रमायी
 
तन में भले भभूत रमायी
 
मन से क्यों मैं गयी भुलायी!  
 
मन से क्यों मैं गयी भुलायी!  
 
राम-कथा क्या मुझे न भायी
 
राम-कथा क्या मुझे न भायी
क्यों यह निठुरायी है !
+
                क्यों यह निठुरायी है!
  
 
कभी मेरी सुधि भी आयी है,
 
कभी मेरी सुधि भी आयी है,

04:52, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!

क्यों मंगलपद रचे अनूठे
यदि विवाह-बंधन थे झूठे!
कैसे वे मुझसे यों रूठे
                झलक न दिखलायी है!
 
ज्यों ही शोध प्रिया की जानी
प्रभु ने लंका-जय की ठानी
सखि! मेरी तो करुण कहानी
                   घर-घर में छायी है
 
तन में भले भभूत रमायी
मन से क्यों मैं गयी भुलायी!
राम-कथा क्या मुझे न भायी
                 क्यों यह निठुरायी है!

कभी मेरी सुधि भी आयी है,
सीता की तो विरह-वेदना स्वामी ने गायी है!
 
मंगल-पद = तुलसीदास जी द्वारा रचे गये 'जानकी-मंगल' तथा 'पार्वती-मंगल'