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"हंसवाहिनी, ऐसा वर दो! / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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मेरी जड़-अनगढ़ वीणा को
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मेरी जड़-अनगढ़ वाणी को  
हे स्वरदेवी, अपना स्वर दो!
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हे स्वरदेवी, अपना स्वर दे!
  
अंदर-बाहर घना अँधेरा
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भीतर-बाहर घना अँधेरा
 
दूर-दूर तक नहीं सबेरा  
 
दूर-दूर तक नहीं सबेरा  
 
दिशाहीन है मेरा जीवन  
 
दिशाहीन है मेरा जीवन  
ममतामयी, उजाला भर दो!
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ममतामयी, उजाला भर दे!
  
 
मानवता की पढूँ ऋचाएं
 
मानवता की पढूँ ऋचाएं
तभी रचूं नूतन कविताएँ  
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तभी रचूँ नूतन कविताएँ  
एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ
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एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ,
करुणाकर ऐसी मति कर दो!
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आशीषों का कर सिर धर दे!
  
जानें अपने को पहचानें
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अपने को पहचानें-जानें
 
'सत्यम्‌ शिवम्‌ सुन्दरम्‌' मानें
 
'सत्यम्‌ शिवम्‌ सुन्दरम्‌' मानें
 
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन  
 
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन  
हंसवाहिनी, ऐसा वर दो!
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हंसवाहिनी, ऐसा वर दे!
 
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18:56, 11 मार्च 2012 के समय का अवतरण

मेरी जड़-अनगढ़ वाणी को
हे स्वरदेवी, अपना स्वर दे!

भीतर-बाहर घना अँधेरा
दूर-दूर तक नहीं सबेरा
दिशाहीन है मेरा जीवन
ममतामयी, उजाला भर दे!

मानवता की पढूँ ऋचाएं
तभी रचूँ नूतन कविताएँ
एकनिष्ठ मन रहे सदा माँ,
आशीषों का कर सिर धर दे!

अपने को पहचानें-जानें
'सत्यम्‌ शिवम्‌ सुन्दरम्‌' मानें
जागृत हो मम प्रज्ञा पावन
हंसवाहिनी, ऐसा वर दे!