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"जीवन है तो... / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | + | इसे सिखा तू | |
− | + | तिरना-उड़ना | |
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− | + | सुन्दर सपना | |
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− | + | नदिया जैसी | |
− | + | चाल निराली | |
− | + | भरी हुई है | |
− | + | या है खाली | |
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− | + | कितनी उथली | |
− | + | कितनी गहरी | |
+ | तू ही नापे | ||
+ | तू ही नपना | ||
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+ | उम्र तम्बूरा | ||
+ | तार न बोले | ||
+ | ठीक लगें सुर | ||
+ | तो मुँह खोले | ||
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+ | बिन गुरुवर के | ||
+ | जाने कैसे | ||
+ | क्या कुछ भीतर | ||
+ | क्या कुछ अपना | ||
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09:07, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण
मेरे मनुआं
जीवन है तो
जीवन-भर
पड़ता है तपना
जीवन-पंछी
बात न माने
चंचल कितना-
नभ को ताने
इसे सिखा तू
तिरना-उड़ना
और दिखा तू
सुन्दर सपना
नदिया जैसी
चाल निराली
भरी हुई है
या है खाली
कितनी उथली
कितनी गहरी
तू ही नापे
तू ही नपना
उम्र तम्बूरा
तार न बोले
ठीक लगें सुर
तो मुँह खोले
बिन गुरुवर के
जाने कैसे
क्या कुछ भीतर
क्या कुछ अपना