भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरठ-5 / स्वप्निल श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ताख़ पर दियासलाई }} मेरठ ...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव | |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=ताख पर दियासलाई / स्वप्निल श्रीवास्तव |
}} | }} | ||
23:34, 7 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
मेरठ के सारे छूरे-कैंचियाँ
बिक गई हैं, मगर
शहर के चेहरे पर पहली जैसी
गझिन दाढ़ी है
जिसमें चोर खोज रहे हैं तिनके
क़त्ल और आगजनी की अफवाहें
तथा बच्चों के गुम होने की
सूचना है
बेगम ब्रिज के चौराहे पर
चिन्तित होकर मैं बच्चों के
वापस लौटने की राह
देख रहा हूँ
मगर यह क्या ?
मेरी ओर आ रही हैं
छूरियाँ और कैंचियाँ