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छोटो सो बी’र | छोटो सो बी’र |
15:54, 21 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
याद आवै री म्हनै
छोटो सो बी’र
भावज को ची’र
पणघट को नी’र
चामळ को ती’र
ऊ म्हारो पी’र
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो ॥
म्हांका गरियाळा की धूळ
बाड़ा को हरियो बंबूळ
धोळा नारां की वा जोट
माथा पै पाला की पोट
चामल नंदी की वै तीरां
टेकां चढबो धीरां धीरां
रेतां में कलोळां करबो
बहती धारा बीचै तरबो
नंदी बीचै नाव खेतो ऊ भोळो सो की’र ।।
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
नित उठ तुलसां जी में पाणी
ग्यारस नै भूखी रखाणी
ऊ म्हांका सुखियो सोमार
लाडी बूहणी को थ्वार
गायां नै लाडूड़ा देबो
सांझ पड़यां को मून लेबो
भायेल्यां ऐ काती न्हाबो
गणगौरयां पै ईशर गाबो
हांसी कोसां दूरै चलगी
अब तो बैठी यादां पी’र ॥
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
म्हांका चूल्हा को अरावो
मेटै काळज्या को दावो
भींतड़ी पै मंडियो मोर
जाणै जोबण की हिलौर
गालां पै मायड़ का चूंबा
बाबल को हाथां उलराबो
छानै छानै शक्कर खाबो
सपना सूं भी दूरी होगी
अब तो मीठी-खी’र ।
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
दूधां नीमड़यां की छाया
सावण हिंदळा हिंदाया
खेतां का हरिया उडाबो
नतकै चारो पूळी लाबो
भायल्यां सूं मन की बातां
बै छीणा पत्ती की रातां
धूळ-भरी गाडी गढार
आता माठसा पढार
करतो चालतां का चाळा
अब बैठी छूं मुंडो सी’र ॥
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
इम्मै कुणको खैदयूं सारो
जोबण बण्ग्यो बैरी म्हारो
लाम्बी होता’ई परछाई
देदी पराया कै तांई
बीती बातां बणगा सपना
म्हनै कोई न दीखै अपणा
छाती पै धर धंधो आयो
म्हांको जनम अश्यो सरजायो
चंदा सा मुखड़ा पै,बादळो-
बण बैठयो म्हारो ची’र ॥
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो
जी घर गाऊं पाळी पोसी
ऊं घर में सूंई आ कोसी
अब छै सासरा की सेवा
छुलग्या चाकी सूं हथलेवा
सूरज कद उगियो कद ढळग्य
ओ जोबण चूल्हा सूं बळग्यो
नणदां का माथै कड़कोल्या
देवर कदी न सूंला बोल्या
फ़सगी आ’र पराया घ्र में
ज्यूं पंजड़ में की’र ।
कोई सुणतो जावै तो दीजै ओळमो ॥