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"ऐसी चहकी चिड़िया / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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− | + | दिन भर फ़ोन | |
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− | + | चिड़ियाँ बैठीं क्या बतियाएँ | |
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− | बात-बात | + | बात-बात में खुश हो जाना |
− | जरा देर में | + | जरा देर में ख़ुद चिढ़ जाना |
− | अपनी उनकी, उनकी अपनी | + | अपनी-उनकी, उनकी-अपनी |
− | जाने कितनी कथा | + | जाने कितनी कथा सुनाना |
− | + | एक दिवस में | |
− | + | कट जाती हैं | |
+ | कई साल की दिनचर्याएं | ||
बातें करती घर आँगन की | बातें करती घर आँगन की | ||
− | + | सूने-भुतहे पिछवारे की | |
− | क्या खाया क्या | + | क्या खाया, क्या पाया जग में |
− | + | बातें होतीं उजयारे की | |
− | + | कभी-कभी होतीं कनबतियां | |
− | + | आँखें लज्जा से भर जाएँ | |
ढीली-अण्टी कभी न करती | ढीली-अण्टी कभी न करती | ||
− | ‘मिस कॉलों’ से काम | + | ‘मिस कॉलों’ से काम चलाना |
− | + | कठिन समय है, सस्ते में ही | |
− | + | उँगली के बल उसे नचाना | |
− | ‘टाइम पास’ किया | + | ‘टाइम पास’ किया करती हैं |
− | + | रच कर कल्पित गूढ़ कथाएँ | |
− | + | जाल तोड़ कर कैसे-कैसे | |
− | + | खोज-खोज कर दाना-पानी | |
− | + | धीरे-धीरे चिड़ियारानी | |
− | + | हुई एक दिन बड़ी सयानी | |
− | + | फुर्र हो गईं सारी बातें | |
− | + | घेर रहीं भावी चिंताएँ | |
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21:48, 11 मार्च 2012 के समय का अवतरण
दिन भर फ़ोन
धरे कानों पर
चिड़ियाँ बैठीं क्या बतियाएँ
बात-बात में खुश हो जाना
जरा देर में ख़ुद चिढ़ जाना
अपनी-उनकी, उनकी-अपनी
जाने कितनी कथा सुनाना
एक दिवस में
कट जाती हैं
कई साल की दिनचर्याएं
बातें करती घर आँगन की
सूने-भुतहे पिछवारे की
क्या खाया, क्या पाया जग में
बातें होतीं उजयारे की
कभी-कभी होतीं कनबतियां
आँखें लज्जा से भर जाएँ
ढीली-अण्टी कभी न करती
‘मिस कॉलों’ से काम चलाना
कठिन समय है, सस्ते में ही
उँगली के बल उसे नचाना
‘टाइम पास’ किया करती हैं
रच कर कल्पित गूढ़ कथाएँ
जाल तोड़ कर कैसे-कैसे
खोज-खोज कर दाना-पानी
धीरे-धीरे चिड़ियारानी
हुई एक दिन बड़ी सयानी
फुर्र हो गईं सारी बातें
घेर रहीं भावी चिंताएँ