भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनुभूति / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(→रमा द्विवेदी की रचनाएँ) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}}{{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी |
− | + | ||
}} | }} | ||
+ | |||
हर अनुभूति परिभाषा के पथ पर बढे-<br> | हर अनुभूति परिभाषा के पथ पर बढे-<br> | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
कैसी है विडम्बना जीवन की?<br> | कैसी है विडम्बना जीवन की?<br> | ||
सच्चे प्रेम का मूल्य,<br> | सच्चे प्रेम का मूल्य,<br> | ||
− | नहीं समझ पाता कोई? | + | नहीं समझ पाता कोई?<br> |
फिर भी वह करता है प्रेम जीवन भर,<br> | फिर भी वह करता है प्रेम जीवन भर,<br> | ||
सिर्फ इसलिए कि-<br> | सिर्फ इसलिए कि-<br> | ||
प्रेम उसका ईमान है,इन्सानियत है,<br> | प्रेम उसका ईमान है,इन्सानियत है,<br> | ||
पूजा है॥<br><br> | पूजा है॥<br><br> |
21:27, 12 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
हर अनुभूति परिभाषा के पथ पर बढे-
यह आवश्यक नहीं,
शब्दों की भी होती है एक सीमा,
कभी-कभी साथ वे देते नहीं
इसलिए बार -बार मिलने व कहने पर
यही लगता है जो कहना था, कहां कहा?
'प्रेम' ऐसी ही इक 'अनुभूति' है,
वह मोहताज नहीं रिश्तों की।
अनाम प्रेम आगे ही आगे बढता है,
किन्तु रिश्ते हर पल मांगते हैं-,
अपना मूल्य?
मूल्य न मिलने पर
सिसकते,चटकते,टूटते,बिखरते हैं
फिर भी रिश्तों की जकडन को,
लोग प्रेम कहते हैं।
कैसी है विडम्बना जीवन की?
सच्चे प्रेम का मूल्य,
नहीं समझ पाता कोई?
फिर भी वह करता है प्रेम जीवन भर,
सिर्फ इसलिए कि-
प्रेम उसका ईमान है,इन्सानियत है,
पूजा है॥