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"तलाश / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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१९८७ मे रचित रचना <br> | १९८७ मे रचित रचना <br> |
22:10, 12 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण
वर्षों से तलाश थी जिसकी
आज मैंने उसकी अनुभूति की
प्रेम का स्वरूप कैसा होगा
कौन शब्दों में परिभाषित कर सकेगा?
क्या प्रेम गूंगा होता है?
हां ऐसा प्रेम मैंने देखा है एक रोज
चुप-चुप सा,गुमसुम सा
पर हंसता -खिलखिलाता सा
न वह कुछ कहता है?
न वह कुछ करता है ?
फिर भी उसका दावा है
कि वह प्रेम करता है ।
प्रेम का कैसा यह अद्भुत रूप है?
प्रेम सच ह्रदय की अनुभूति है ।
आदमी इतना क्यों मजबूर है?
संबंधों के बोझ से क्यों चूर है?
कि प्रेम को भी खुलकर जी नहीं सकता
जिसकी उसे तलाश है ।
१९८७ मे रचित रचना