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15:22, 7 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

उदास पसरा था
रात को मैं अपने बिस्तर पर
सोच रहा था
विषाक्त हो चुके
वातावरण पर

तभी दूर
कच्ची बस्ती से
आई ढोल की आवाज़
जो ले गई मुझे
अपने बचपन के गाँव में
इधर बहुत दिन हो गए थे मुझे
बचपन के गाँव को याद किए हुए

मैंने मन ही मन में
ढोल की आवाज़ को
धन्यवाद दिया
और सो गया !