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"ढेला और पत्ता / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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हम कुल दो थे
 
हम कुल दो थे
 
 
दोनों साथी
 
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राह थी लम्बी
 
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थक कर चूर,
 
थक कर चूर,
 
 
वह भी मैं भी
 
वह भी मैं भी
 
  
 
कस कर भूख लगी थी मुझको,
 
कस कर भूख लगी थी मुझको,
 
 
पैसा भी कुछ जेबी में था,
 
पैसा भी कुछ जेबी में था,
 
 
किन्तु उसे भी देना होगा,
 
किन्तु उसे भी देना होगा,
 
 
यही सोच मैं भूखा चलता गया ।
 
यही सोच मैं भूखा चलता गया ।
 
  
 
कस कर प्यास लगी थी उसको,
 
कस कर प्यास लगी थी उसको,
 
 
पैसा भी कुछ जेबी में था,
 
पैसा भी कुछ जेबी में था,
 
 
किन्तु उसे भी देना होगा,
 
किन्तु उसे भी देना होगा,
 
 
यही सोच वह प्यासा चलता गया ।
 
यही सोच वह प्यासा चलता गया ।
 
  
 
दोनों खा सकते थे थोड़ा
 
दोनों खा सकते थे थोड़ा
 
 
दोनों पी सकते थे थोड़ा
 
दोनों पी सकते थे थोड़ा
 
 
दोनों जी सकते थे थोड़ा
 
दोनों जी सकते थे थोड़ा
 
 
मैं भी वह भी ढेला-पत्ता ।
 
मैं भी वह भी ढेला-पत्ता ।
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13:19, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

हम कुल दो थे
दोनों साथी
राह थी लम्बी
थक कर चूर,
वह भी मैं भी

कस कर भूख लगी थी मुझको,
पैसा भी कुछ जेबी में था,
किन्तु उसे भी देना होगा,
यही सोच मैं भूखा चलता गया ।

कस कर प्यास लगी थी उसको,
पैसा भी कुछ जेबी में था,
किन्तु उसे भी देना होगा,
यही सोच वह प्यासा चलता गया ।

दोनों खा सकते थे थोड़ा
दोनों पी सकते थे थोड़ा
दोनों जी सकते थे थोड़ा
मैं भी वह भी ढेला-पत्ता ।