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"दरद दिसावर भाग-2 / भागीरथसिंह भाग्य" के अवतरणों में अंतर

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<poem>जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।
 
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खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
 
खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
 
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||  
 
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||  
 
कठिन राजस्थानी शब्दो के हिन्दी अर्थ
 
* बेलिया -साथी, * बध बध - आगे आकर , * ओळमा - उलाहना,
 
*बाँथ- आलिंगन , *पैली - एक , *सायना -हम उमर , *सेज़ाँ - शयन करने की जगह
 
*गौरडी - गणगौर जैसी नायिका , * गेल -पिछला , *परणेत - पत्नी ,
 
*बेली- साथी , *लोगडा - आम आदमी , *घूमन - फिरना ,
 
*बेलिया- साथिया , *पीसां - पैसे , *सगळा -सभी ,
 
*कग्यो - कह गया , *मांड्या - लिखना , *कंवळै - दीवार पर ,
 
*मैडी - ऊंचा स्थान , *दोरा सोरा - जैसे तैसे किसी कार्य को करना ,
 
*गैला - पागल, *लाजां - लज्जा , *चीरडा - चिथड़े , * रात्यूं - रात भर ,
 
*फाग - एक प्रकार की ओढ़नी जो फाल्गुन में राजस्थानी औरते पहनती है ,
 
*सून्पी- सौंप दिया , * र्रैँतां थका , होने के बावजूद,
 
*सूगली - गंदी , *डूंगरी - पहाडी ,
 
*कैडो - कैसा , *जिण रो - जिस का
 
 
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14:12, 30 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात ।
बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ ॥

पैली तारिख लागताँ जागै घर ओ भाग ।
मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग ॥

फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल ।
चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल ॥

घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् ।
दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥

चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर ।
गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर ॥

चपडासी है सा’ब रो बूढो ठेरो बाप ।
बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥

बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत ।
घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत ॥

भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत ।
परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत ॥

गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज ।
परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज ॥

बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव ।
चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।।

बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।
बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।|

लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार ।
बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार ॥

मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव ।
म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव ॥

मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।
मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥

बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।
गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख ॥

दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।
पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।।

मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।
जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप ॥

जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।
गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम ॥

गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।
सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥


कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।
रात हमेशा आवती रात नै आयी रात ॥


आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।
मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥

दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।
च्यार पहर री रात आ कीयाँ ढळसी राम ॥

सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।
प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद ॥

नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।
चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट ॥

प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।
दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ ॥

पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।
उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम ॥

दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।
इण कातिक तो आ घराँ ओ ! परदेसी राम ॥

जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।
म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव ॥

जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।
म्हारै घर रै आंगणै कदै न देख झांक ॥

मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग ।
उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥

बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।
जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर ॥

बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।
साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥

बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार ।
मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥

नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।
सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास ॥

सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।
मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ ॥

सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।
सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप ॥

खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||