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"शानदार बाग़ीचा / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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22:19, 11 जून 2009 के समय का अवतरण

फूल सबके लिए खिले हैं

हवा सबके लिए बहती है

सबको प्रिय है फूलों के बीच चलना रुकना दौड़ना

देर तक देखना फूलों के साथ हवा के खेल


मैं एक फूल तोड़कर सूंघता हूँ

और एक बादशाह की तस्वीर में बदल जाता हूँ

एक फूल मेरे पैर के नीचे आकर कुचल जाता है

तब मैं दिखता हूँ एक ग़रीब की सूरत

जिसे बादशाह के बाग़ीचे में टहलने की मनाही है

अनंत काल से ।


(रचनाकाल: 1996)