भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुनगुनी धूप है / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Om nishchal (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: गुनगुनी धूप है गुनगुनी छाँह है. एक तन एक मन एक वातावरण, प्यार की गं…) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=ओम निश्चल | ||
+ | |संग्रह=शब्द सक्रिय हैं / ओम निश्चल | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
+ | <Poem> | ||
गुनगुनी धूप है | गुनगुनी धूप है | ||
गुनगुनी छाँह है. | गुनगुनी छाँह है. | ||
+ | |||
एक तन एक मन | एक तन एक मन | ||
एक वातावरण, | एक वातावरण, | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 16: | ||
मन में जागी मिलन की | मन में जागी मिलन की | ||
अमिट चाह है. | अमिट चाह है. | ||
+ | |||
नींद में हम मिलें | नींद में हम मिलें | ||
स्वप्न में हम मिलें | स्वप्न में हम मिलें | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 23: | ||
हमको जग की नहीं | हमको जग की नहीं | ||
आज परवाह है. | आज परवाह है. | ||
+ | |||
चिट्ठियाँ जो लिखीं | चिट्ठियाँ जो लिखीं | ||
संधियाँ जो रचीं | संधियाँ जो रचीं | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 30: | ||
कल्पना में पगी | कल्पना में पगी | ||
प्यार की राह है. | प्यार की राह है. | ||
+ | |||
दो घड़ी बैठ कर | दो घड़ी बैठ कर | ||
दो घड़ी बोल कर | दो घड़ी बोल कर |
12:13, 30 मार्च 2012 के समय का अवतरण
गुनगुनी धूप है
गुनगुनी छाँह है.
एक तन एक मन
एक वातावरण,
प्यार की गंध का
जादुई व्याकरण,
मन में जागी मिलन की
अमिट चाह है.
नींद में हम मिलें
स्वप्न में हम मिलें
ज़िंदगी की हरेक
साँस में हम खिलें
हमको जग की नहीं
आज परवाह है.
चिट्ठियाँ जो लिखीं
संधियाँ जो रचीं
तुम मिले जब से
बेचैनियाँ हैं जगी
कल्पना में पगी
प्यार की राह है.
दो घड़ी बैठ कर
दो घड़ी बोल कर
तुम गए साँस में
छंद-सा घोल कर
सिंफनी नींद है
चंपई ख्वाब है.