भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुनगुनी धूप है / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Om nishchal (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=ओम निश्चल | |रचनाकार=ओम निश्चल | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=शब्द सक्रिय हैं / ओम निश्चल |
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} |
12:13, 30 मार्च 2012 के समय का अवतरण
गुनगुनी धूप है
गुनगुनी छाँह है.
एक तन एक मन
एक वातावरण,
प्यार की गंध का
जादुई व्याकरण,
मन में जागी मिलन की
अमिट चाह है.
नींद में हम मिलें
स्वप्न में हम मिलें
ज़िंदगी की हरेक
साँस में हम खिलें
हमको जग की नहीं
आज परवाह है.
चिट्ठियाँ जो लिखीं
संधियाँ जो रचीं
तुम मिले जब से
बेचैनियाँ हैं जगी
कल्पना में पगी
प्यार की राह है.
दो घड़ी बैठ कर
दो घड़ी बोल कर
तुम गए साँस में
छंद-सा घोल कर
सिंफनी नींद है
चंपई ख्वाब है.