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− | |रचनाकार=सुहास बोरकर
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− | [[Category:अंग्रेज़ी भाषा]]
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− | {{KKCatKavita}}
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− | जब नासूर चीखेंगे
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− | <poem>
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− | सल्मडॉग को सलाम करो
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− | अपने दबे-कुचले ग़रीब लोगों के
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− | खुले घावों की सड़ांध से।
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− | तमाम चमक-दमक
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− | और लाल कालीन के नर्म रोओं से भी
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− | इस बदबू को तुम मिटा नहीं सकते
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− | क्योंकि भूख तुम्हारे ट्रिकल डाउन का
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− | इंतज़ार नहीं करती
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− | क्योंकि विश्वास तुम्हारे जीवन के अवसान का
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− | इंतज़ार नहीं करता
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− | क्योंकि सांसें तुम्हारे बिलबिलाते कीड़ों के बढ़ने का
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− | इंतज़ार नहीं करतीं
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− | स्वर्ण मूर्तियों को रहने दो वहीं
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− | जैसे गांधी और सत्यजीत के
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− | पथ का अंतिम गीत
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− | - पाथेर शेष पंचाली।
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− | हमने खड़ी कर दी हैं बाधाएँ
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− | क्योंकि तुम्हारे पास कोई जवाब नहीं है
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− | हमारी दुखों का
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− | क्योंकि तुमने छिपा दी है
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− | हमारे सपनों की चाबी
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− | अपने मुर्दाघर की शव परीक्षागृह में
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− | जहां हमारी आकांक्षाओं को बोतलबंद कर रहे हो
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− | स्मृतिलोप के छोटे-छोटे फोर्मेलिन के जार में
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− | और हमारे बचे रहने कि जद्दोजहद
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− | हमें विवश करती है भूल जाने को
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− | जहां हमारे बच्चों की हजारों-हज़ार लाशें
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− | तुम्हारे पिरामिड में दफ़न हैं
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− | दीमकों के खाए सड़े समय पर
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− | पाँच वर्षीय योजनाएँ निर्भर हैं
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− | कुछ सांख्यिकीविदों के
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− | ग़रीबी रेखा को ऊपर-नीचे सरकाने पर
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− | जिसे ज़रूरत पड़ने पर नकारा भी जा सकता है
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− | ' भव्य ' बतला कर
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− | क्योंकि केवल आप ही कर सकते हैं दावतें
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− | जब हम मरें भूख से।
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− | लेकिन एक दिन बहुत जल्दी ही आएगा
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− | जब हमारे नासूर चीखेंगे
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− | हम उन पिरामिडों को उलट देंगे
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− | जब हम आजाद होंगे
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− | देंगे जब हम अपने को
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− | जो सच में हमारा है?
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− | जय हो! जय हो!
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