"देखना भी चाहूँ / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर
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दुख को दुखी    | दुख को दुखी    | ||
00:10, 18 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण
देखना भी चाहूं
तो क्या देखूं !
कि प्रसन्नता नहीं है प्रसन्न
उदासी नहीं है उदास
और दुख भी नहीं है दुखी
क्या यही देखूं ? -
कि हरे में नहीं है हरापन
न लाल में लालपन
न हो तो न सही
कोई तो 'पन' हो
जो भी जो है
वही 'वह' नहीं है
बस , देखने को यही है 
और कुछ नहीं है
हां, यह सही है
कि जगह बदलूं
तो देख सकूंगा
भूख का भूखपन
प्यास का प्यासपन
चीख का चीखपन
और चुप्पी का चुप्पीपन
वहीं से
देख पाऊंगा
दुख को दुखी
सुख को सुखी
उदासी को उदास
और
प्रसन्नता को प्रसन्न
और
अगर जरा सा
परे झांक लूं
उनके
तो
हरे में लबालब हरापन
लालपन भरपूर लाल में
जो भी जो है , 
वह बिल्कुल वही है
देखे एक बार 
तो देखते ही रह जाओ!
जो भी हो सकता है 
कहीं भी
वह सब का सब
वही है
इस जगह से नहीं 
उस जगह से दिखता है
देखना चाहता हूं 
तो
पहले मुझे
जगह बदलनी होगी।
	
	