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13:06, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
फेनिल आवर्त्तों के मध्य
अजगरों से घिरा हुआ
विष-बुझी फुंकारें
सुनता-सहता,
अगम, नीलवर्णी,
इस जल के कालियादाह में
दहता,
सुनो, कृष्ण हूँ मैं,
भूल से साथियों ने
इधर फेंक दी थी जो गेंद
उसे लेने आया हूँ
[आया था
आऊँगा]
लेकर ही जाऊँगा।