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"नई पढ़ी का गीत / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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13:07, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

जो मरुस्थल आज अश्रु भिगो रहे हैं,
भावना के बीज जिस पर बो रहे हैं,
सिर्फ़ मृग-छलना नहीं वह चमचमाती रेत!

क्या हुआ जो युग हमारे आगमन पर मौन?
सूर्य की पहली किरन पहचानता है कौन?
अर्थ कल लेंगे हमारे आज के संकेत।

तुम न मानो शब्द कोई है न नामुमकिन
कल उगेंगे चाँद-तारे, कल उगेगा दिन,
कल फ़सल देंगे समय को, यही ‘बंजर खेत’।