भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पाँच जोड़ बाँसुरी / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
+
|रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह
|संग्रह=चट्टानों का जलगीत/ वेणु गोपाल
+
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 
 
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
 
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
 
 
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
 
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
 
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 
  
 
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
 
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
 
 
मन उठ चलने को हो रहा
 
मन उठ चलने को हो रहा
 
 
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
 
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
 
 
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
 
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
 
 
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
 
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
 
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 
पाँच जोड़ बाँसुरी
 +
</poem>

00:22, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण

पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी

वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी