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"सूना घोंसला / नंदकिशोर आचार्य" के अवतरणों में अंतर
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12:50, 5 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
गाते रहते पाखी
हरे कभी तो झरे पत्तों में
कभी
—कितने सुरों में
खिलता रहता जंगल
और एक यह मैं हूँ
उजड़ी हुई बगिया में
सूना घोंसला कोई—
तिनके बिखेरती रहती है
जिसके
हवा चुपचाप
—
8 मई 2010