भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सोचा था / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=गीत विहग उतरा / रम...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
जाने किन सिरफिरे अभावों में | जाने किन सिरफिरे अभावों में | ||
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम | रद्दी के भाव बिक गए हैं हम | ||
− | + | बेमौसम । | |
आए थे ताज़े अख़बार-से | आए थे ताज़े अख़बार-से | ||
− | + | सवेरा था | |
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये | धूप में नहाए तो बुढ़ियाये | ||
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से | निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
सोचा था तैर कर समुन्दर की | सोचा था तैर कर समुन्दर की | ||
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम | लहरों पर नाम लिख गए हैं हम | ||
− | + | कितना भ्रम । | |
</poem> | </poem> |
12:45, 19 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
जाने किन सिरफिरे अभावों में
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम
बेमौसम ।
आए थे ताज़े अख़बार-से
सवेरा था
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से
ऊबे तो
अपने अवमूल्यन पर पछताए
सोचा था तैर कर समुन्दर की
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम
कितना भ्रम ।