"सेहत का राज / विश्वनाथप्रसाद तिवारी" के अवतरणों में अंतर
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21:30, 28 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
मित्रो, मैं ख़ुश हूँ
क्योंकि कभी-कभी ही बाहर निकलता हूँ
मेरी सेहत अच्छी है
क्योंकि अमूमन चुप रहता हूँ
अख़बार तो रोज़ वही पढ़ सकता है
जो पत्थर दिल हो ।
मुझे अचरज होता है
लोग अपनी कमाई का एक-चौथाई
दवा पर खर्च करते हैं
वे ज़रूर चिड़चिड़े मिजाज़ के लोग होंगे
उन्हें ज़ोर-ज़ोर से हँसते रहना चाहिए
हँसना बीमारी को टालने की अचूक दवा है।
मुझे देखो
मैं खाली समय में
अपने छोटे बच्चों का घोड़ा बनता हूँ
या शराबख़ानों में नाचता-गाता हूँ ।
इस दौर में चीज़ें संक्रामक रोग हैं
उनमें शामिल होना भँवर में शामिल होना है ।
यह अनुभव मैंने वर्षों की तन्हाई के बाद
हासिल किया है ।
अब मैं सुबह की चीज़ें
शाम को भूल जाता हूँ
पिछले जन्म में सोचते-सोचते
मुझे ब्रेन हैमरेज हो गया था
डाक्टरों ने आख़िरी सलाह दी थी
कि इस आदमी को ज़िन्दा रखने के लिए
इसकी याददाश्त को कमज़ोर करना ज़रूरी है ।
तब से मैं अपने बच्चों को बोलना नहीं सिखाता ।
भाषा एक ख़तरनाक चीज़ है ।
महानुभाव, मैं वर्षों पहले
पत्थरों के इस शहर में आया था
और रात को भयानक सपने देखा करता था
मैं जिस पेड़ के नीचे सोया करता था
वह आधी रात को ठठाकर हँसता था ।
तब मैं पेड़ों की भाषा नहीं समझता था ।
इसका रहस्य तो मुझे बहुत बाद में पता चला
जब मैं आदमी की भाषा धीरे-धीरे भूल चुका था ।
तो श्रीमान, अब मैं काफ़ी हृष्ट-पुष्ट हूँ
और ताक़त बढ़ने के साथ काफ़ी गंभीर हो गया हूँ ।
मैं कभी-कभी अपने घोड़े पर बैठ कर
शहर का मुआइना कर लेता हूँ
गो अहलकार रोज़ सूचना देते रहते हैं
कि शहर में अमन-चैन है
और लोग अपने मकानों में कभी ताला नहीं डालते ।
जासूसों की निश्चित सूचना है
कि राज्य में किसी तरह की कोई गड़बड़ी नहीं है
केवल कुछ ज़िद्दी घोड़े
कभी-कभी अस्तबल में अलफ़ ले लेते हैं ।