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19:37, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण
राग कान्हरौ
पलना स्याम झुलावती जननी।
अति अनुराग पुरस्सर गावति, प्रफुलित मगन होति नँद-घरनी ॥
उमँगि-उमँगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी ।
सूरदास प्रभु मुदित जसोदा, पुरन भई पुरातन करनी ॥
माता श्यामसुन्दर को पलने में झुला रही हैं । अत्यन्त प्रेमवश वे नन्दपत्नी गाती जाती हैं, वे आनन्द से प्रफुल्लित हैं, मन-ही-मन प्रसन्न हो रही हैं । बार-बार उल्लसित होकर प्रभु भुजाएँ फैलाते हैं और श्रीयशोदा जी हर्षित होकर उन्हें गोद में उठा लेती हैं । सूरदास जी कहते हैं--श्रीयशोदा जी आनन्दित हो रही हैं । उनके पूर्वकृत पुण्यफल पूर्णतः सफल हो गये हैं ।