भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
− | यह आनन्द-संवाद (कि कन्हाई ने आज स्वयं करवट ले ली है) सुनकर | + | यह आनन्द-संवाद (कि कन्हाई ने आज स्वयं करवट ले ली है) सुनकर व्रज की स्त्रियाँ हर्षित हो गयीं । वे वनमाली श्यामसुन्दर को देखने दौड़ पड़ीं। कोई युवती (नन्दभवन में) आ गयी है, कोई आ रही है, कोई उठकर चली है, कोई समाचार सुनते ही आनन्दमग्न हो रही है । घर-घर आनन्द-बधाई बँट रही है । सूरदास अपने प्रभुपर बलिहारी जाता है । |
01:47, 6 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी । देखन कौं धाईं बनवारी ॥
कोउ जुवती आई , कोउ आवति । कोउ उठि चलति, सुनत सुख पावति ॥
घर-घर होति अनंद-बधाई । सूरदास प्रभु की बलि जाई ॥
यह आनन्द-संवाद (कि कन्हाई ने आज स्वयं करवट ले ली है) सुनकर व्रज की स्त्रियाँ हर्षित हो गयीं । वे वनमाली श्यामसुन्दर को देखने दौड़ पड़ीं। कोई युवती (नन्दभवन में) आ गयी है, कोई आ रही है, कोई उठकर चली है, कोई समाचार सुनते ही आनन्दमग्न हो रही है । घर-घर आनन्द-बधाई बँट रही है । सूरदास अपने प्रभुपर बलिहारी जाता है ।