"घर जलेंगे उनसे इक दिन.../ ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर
('{{kkGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ओमप्रकाश यती |संग्रह= }} {{KKcatGhazal}} <poem> घ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती | |रचनाकार = ओमप्रकाश यती | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGhazal}} |
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पता | घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पता | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 22: | ||
जाएगा उनके सहारे ही शिखर तक आदमी | जाएगा उनके सहारे ही शिखर तक आदमी | ||
फिर गिरा देगा उन्हें ही सीढ़ियों को क्या पता | फिर गिरा देगा उन्हें ही सीढ़ियों को क्या पता | ||
− | |||
− | |||
वो गुज़र जाती हैं यूँ ही रास्तों को काटकर | वो गुज़र जाती हैं यूँ ही रास्तों को काटकर |
07:15, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पता
है नज़र उन पर किसी की बस्तियों को क्या पता
ढूँढ़ती हैं आज भी पहली सी रंगत फूल में
ज़हर कितना है हवा में तितलियों को क्या पता
हाल क्या है ? ठीक है, जब भी मिले इतना हुआ
किसके अन्दर दर्द क्या है, साथियों को क्या पता
धूप ने , जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें
इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता
जाएगा उनके सहारे ही शिखर तक आदमी
फिर गिरा देगा उन्हें ही सीढ़ियों को क्या पता
वो गुज़र जाती हैं यूँ ही रास्तों को काटकर
अपशकुन है ये किसी का , बिल्लियों को क्या पता
हौसले के साथ लहरों की सवारी कर रहीं
कब कहाँ तूफ़ान आए कश्तियों को क्या पता
वो तो अपना घर समझकर कर रहीं अठखेलियाँ
जाल फैला है नदी में मछलियों को क्या पता