"आजु भोर तमचुर के रोल / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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सूर स्याम ब्रज-जन-मोहन बरष-गाँठि कौ डोरा खोल ॥ <br> | सूर स्याम ब्रज-जन-मोहन बरष-गाँठि कौ डोरा खोल ॥ <br> | ||
− | भावार्थ :-- आज प्रातःकाल अँधेरा रहते ही चहल-पहल मच गयी है । | + | भावार्थ :-- आज प्रातःकाल अँधेरा रहते ही चहल-पहल मच गयी है । गोकुल में आनन्द मनाया जा रहा है, व्रजराज के मुहल्ले में मंगल-ध्वनि हो रही है, श्रीनन्द जी फूले-फूले फिर रहे हैं, उन्हें बड़ा आनन्द हो रहा है, वे पुष्प और ताम्बूल मँगवा रहे हैं, श्रीयशोदा जी शरीर और मन दोनों से प्रफुल्लित हुई घूम रही है, अपने अमूल्य धन कन्हाई को उन्होंने उबटन लगाकर स्नान कराया और अब कमल वस्त्र से उसके छोटे से शरीर, दोनों छोटे-छोटे हाथ तथा छोटे-छोटे चरणों को पोंछ रही हैं । कन्हाई के गले में मणियों की माला शोभा दे रही है, अंगों में आभूषण तथा अँगुलियों में अँगूठियाँ हैं । सिर पर माता ने चौकोर टोपी पहनायी है, नजर न लगने के लिये कज्जल का बिन्दु भाल पर दिया है, नेत्रों में काजल लगाया है तथा झगुलिया (कुर्ता) पहिनायी है । श्याम माता से झगड़ा कर रहा है (स्नान, वस्त्रादि धारण का विरोध करता है), लड़खड़ाता है (भूमि में लेट जाने तथा माता के हाथ से छूटने का प्रयत्न करता है) और कलबल (अस्फुट) स्वर में बोलता है । माता उसके दोनों कपोल पकड़कर मुख का चुम्बन करती हैं । आज तेरी वर्षगाँठ है ! यह कहकर उल्लास प्रकट करती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर व्रज जनों के चित्त को मोहित करने वाले हैं । आज उन की वर्षगाँठ के सूत्र की गन्थि खोली गयी है । |
01:57, 6 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
राग बिलावल
आजु भोर तमचुर के रोल ।
गोकुल मैं आनंद होत है, मंगल-धुनि महराने टोल ॥
फूले फिरत नंद अति सुख भयौ, हरषि मँगावत फूल-तमोल ।
फूली फिरति जसोदा तन-मन, उबटि कान्ह अन्हवाई अमोल ॥
तनक बदन, दोउ तनक-तनक कर, तनक चरन, पोंछति पट झोल ।
कान्ह गरैं सोहति मनि-माला, अंग अभूषन अँगुरिनि गोल ॥
सिर चौतनी, डिठौना दीन्हौ, आँखि आँजि पहिराइ निचोल ।
स्याम करत माता सौं झगरौं, अटपटात कलबल करि बोल ॥
दोउ कपोल गहि कै मुख चूमति, बरष-दिवस कहि करति कलोल ।
सूर स्याम ब्रज-जन-मोहन बरष-गाँठि कौ डोरा खोल ॥
भावार्थ :-- आज प्रातःकाल अँधेरा रहते ही चहल-पहल मच गयी है । गोकुल में आनन्द मनाया जा रहा है, व्रजराज के मुहल्ले में मंगल-ध्वनि हो रही है, श्रीनन्द जी फूले-फूले फिर रहे हैं, उन्हें बड़ा आनन्द हो रहा है, वे पुष्प और ताम्बूल मँगवा रहे हैं, श्रीयशोदा जी शरीर और मन दोनों से प्रफुल्लित हुई घूम रही है, अपने अमूल्य धन कन्हाई को उन्होंने उबटन लगाकर स्नान कराया और अब कमल वस्त्र से उसके छोटे से शरीर, दोनों छोटे-छोटे हाथ तथा छोटे-छोटे चरणों को पोंछ रही हैं । कन्हाई के गले में मणियों की माला शोभा दे रही है, अंगों में आभूषण तथा अँगुलियों में अँगूठियाँ हैं । सिर पर माता ने चौकोर टोपी पहनायी है, नजर न लगने के लिये कज्जल का बिन्दु भाल पर दिया है, नेत्रों में काजल लगाया है तथा झगुलिया (कुर्ता) पहिनायी है । श्याम माता से झगड़ा कर रहा है (स्नान, वस्त्रादि धारण का विरोध करता है), लड़खड़ाता है (भूमि में लेट जाने तथा माता के हाथ से छूटने का प्रयत्न करता है) और कलबल (अस्फुट) स्वर में बोलता है । माता उसके दोनों कपोल पकड़कर मुख का चुम्बन करती हैं । आज तेरी वर्षगाँठ है ! यह कहकर उल्लास प्रकट करती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर व्रज जनों के चित्त को मोहित करने वाले हैं । आज उन की वर्षगाँठ के सूत्र की गन्थि खोली गयी है ।