भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नंद-धाम खेलत हरि डोलत / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग बिलावल नंद-धाम खेलत हरि डोलत ।<br> जसुमति ...)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}  
 
}}  
  
राग बिलावल  
+
राग बिलावल  
  
  
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
बैन सुनत माता पहिचानी, चले घुटुरुवनि पाइ ॥<br>
 
बैन सुनत माता पहिचानी, चले घुटुरुवनि पाइ ॥<br>
 
लै उठाइ अंचल गहि पोंछै, धूरि भरी सब देह ।<br>
 
लै उठाइ अंचल गहि पोंछै, धूरि भरी सब देह ।<br>
सूरज प्रभु जसुमति रज झारति,कहाँ भरी यह खेह ॥<br>
+
सूरज प्रभु जसुमति रज झारति,कहाँ भरी यह खेह ॥<br><br>
  
भावार्थ :-- हरि नन्दभवनमें खेलते फिर रहे हैं । यशोदाजी घरके भीतर रसोई बना रही हैं, ये किलकारी मारते कुछ बोल रहे हैं । इसी समय माता यशोदाने मोहनको पुकारा - `लाल ! तू दौड़कर यहाँ क्यों नहीं आता ।' शब्द सुनकर पहिचान लिया कि मैया बुला रही है, इससे घुटनोंके बल चरण घसीटते चल पड़े । मैयाने गोदमें उठा लिया, धूलि भरा हुआ पूरा शरीर अञ्चलसे पोंछने लगीं । सूरदासजी कहतेहैं - मेरे स्वामीके शरीरमें लगीधूलि झाड़ती हुई यशोदाजी कहती हैं- `इतनी धूलि तुमने कहाँसे लपेट ली!'
+
भावार्थ :-- हरि नन्दभवन में खेलते फिर रहे हैं । यशोदा जी घरके भीतर रसोई बना रही हैं, ये किलकारी मारते कुछ बोल रहे हैं । इसी समय माता यशोदा ने मोहन को पुकारा - `लाल ! तू दौड़कर यहाँ क्यों नहीं आता ।' शब्द सुनकर पहिचान लिया कि मैया बुला रही है, इससे घुटनों के बल चरण घसीटते चल पड़े । मैया ने गोद में उठा लिया, धूलि भरा हुआ पूरा शरीर अञ्चल से पोंछने लगीं । सूरदास जी कहते हैं - मेरे स्वामी के शरीर में लगी धूलि झाड़ती हुई यशोदा जी कहती हैं- `इतनी धूलि तुमने कहाँ से लपेट ली!'

20:33, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

राग बिलावल


नंद-धाम खेलत हरि डोलत ।
जसुमति करति रसोई भीतर, आपुन किलकत बोलत ॥
टेरि उठी जसुमति मोहन कौं, आवहु काहैं न धाइ ।
बैन सुनत माता पहिचानी, चले घुटुरुवनि पाइ ॥
लै उठाइ अंचल गहि पोंछै, धूरि भरी सब देह ।
सूरज प्रभु जसुमति रज झारति,कहाँ भरी यह खेह ॥

भावार्थ :-- हरि नन्दभवन में खेलते फिर रहे हैं । यशोदा जी घरके भीतर रसोई बना रही हैं, ये किलकारी मारते कुछ बोल रहे हैं । इसी समय माता यशोदा ने मोहन को पुकारा - `लाल ! तू दौड़कर यहाँ क्यों नहीं आता ।' शब्द सुनकर पहिचान लिया कि मैया बुला रही है, इससे घुटनों के बल चरण घसीटते चल पड़े । मैया ने गोद में उठा लिया, धूलि भरा हुआ पूरा शरीर अञ्चल से पोंछने लगीं । सूरदास जी कहते हैं - मेरे स्वामी के शरीर में लगी धूलि झाड़ती हुई यशोदा जी कहती हैं- `इतनी धूलि तुमने कहाँ से लपेट ली!'