भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाइकु / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(''''कुँअर बेचैन''' <poem> '''वर्षा हाइकु''' आषाढ़ माह उगी मन-म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
'''[[कुँअर बेचैन]]'''
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
 +
|संग्रह=हाइकू 2009 / गोपालदास "नीरज"
 +
}}
 +
[[Category:हाइकु]]
 
<poem>
 
<poem>
 +
जल चढ़ाया
 +
तो सूर्य ने लौटाए
 +
घने बादल ।
  
'''वर्षा हाइकु'''
+
तटों के पास
 
+
नौकाएं तो हैं,किन्तु
आषाढ़ माह
+
पाँव कहाँ हैं?
उगी मन-मोर में
+
नृत्य की चाह
+
 
+
पहला मेह
+
भीतर तक भीगी
+
गोरी की देह
+
 
+
पहला मेह
+
या प्रिय के मन से
+
छलका स्नेह
+
 
+
हुई अधीर
+
मेघ ने छुआ जब
+
नदी का नीर
+
 
+
देखे थे ख़्वाब
+
भर दिए मेघों ने
+
सूखे तालाब
+
 
+
भरे ताल
+
पास खड़े पेड़ भी
+
हैं खुशहाल
+
 
+
लिक्खे सर्वत्र
+
आसुओं की बूँदों से
+
पेड़ों ने पत्र
+
 
+
जलतरंग
+
जल बना, तर भी -
+
बना मृदंग
+
  
ये नन्ही नाव
+
ज़मीन पर
काग़ज़ में बैठे हैं
+
बच्चों ने लिखा'घर'
बच्चों के भाव
+
रहे बेघर ।
  
पूरा आकाश
+
रहता मौन
दे गया कृषकों को
+
तो ऐ झरने तुझे
जीने की आश
+
देखता कौन?
  
छतरी खुली
+
चिड़िया उड़ी
छूट रही हाथ से
+
किन्तु मैं पींजरे में
ये चुलबुली
+
वहीं का वहीं !
  
भीगी सड़क
+
ओ रे कैक्टस
फिसल मत जाना
+
बहुत चुभ लिया
ओ बेधड़क
+
अब तो बस
  
चौपालों पर
+
आपका नाम
गूँज उठे हैं ऊँचे
+
फिर उसके बाद
आल्हाके स्वर
+
पूर्ण विराम!
  
इंद्रधनुष
 
बिखरा कर रंग
 
कितना खुश
 
  
पानी की प्यास
 
धरा हो या गगन
 
सबके पास
 
 
</poem>
 
</poem>

14:34, 9 मई 2012 के समय का अवतरण

जल चढ़ाया
तो सूर्य ने लौटाए
घने बादल ।

तटों के पास
नौकाएं तो हैं,किन्तु
पाँव कहाँ हैं?

ज़मीन पर
बच्चों ने लिखा'घर'
रहे बेघर ।

रहता मौन
तो ऐ झरने तुझे
देखता कौन?

चिड़िया उड़ी
किन्तु मैं पींजरे में
वहीं का वहीं !

ओ रे कैक्टस
बहुत चुभ लिया
अब तो बस

आपका नाम
फिर उसके बाद
पूर्ण विराम!