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"जसुमति दधि मथन करति / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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गावत गुन सूरदास, बढ्यौ जस भुव-अकास, नाचत त्रैलोकनाथ माखन के काजै ॥<br><br>
 
गावत गुन सूरदास, बढ्यौ जस भुव-अकास, नाचत त्रैलोकनाथ माखन के काजै ॥<br><br>
  
परमश्रेष्ठ नन्दभवनके आँगनमें दही मथती हुई श्रीयशोदाजी बैठी हैं । (उनके पास) खड़े श्याम हँस रहे हैं, उनके छोटे-छोटे दाँतोंकी छटा शोभित हो रही है । देखते ही वह चित्तको चुरा लेती है, उसकी शोभाका वर्णन नहीं किया जा सकता, ऐसा लगता है मानोमुनियोंका मन हरण करने के लिए मोहिनियोंका दल सज्जित हुआ है । मैया कहती हैं- मोहन ! तुम नाचो तो तुम्हें मक्खन दूँगी' (इससे नाचने लगते हैं)चरणों के चलने से रुनझुन नूपुर बज रहे हैं । सूरदास (अपने प्रभुका) गुणगान करते हैं - `प्रभो ! आपका यह (भक्त-वात्सल्य) सुयश पृथ्वी और स्वर्गादिमें विख्यात हो गया है कि त्रिलोकीके स्वामी (भक्तवत्सलतावश) मक्खनके लिये नाच रहे हैं ।
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परमश्रेष्ठ नन्दभवन के आँगन में दही मथती हुई श्रीयशोदा जी बैठी हैं । (उनके पास) खड़े श्याम हँस रहे हैं, उनके छोटे-छोटे दाँतों की छटा शोभित हो रही है । देखते ही वह चित्त को चुरा लेती है, उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता, ऐसा लगता है मानो मुनियों का मन हरण करने के लिए मोहिनियों का दल सज्जित हुआ है । मैया कहती हैं- मोहन ! तुम नाचो तो तुम्हें मक्खन दूँगी' (इससे नाचने लगते हैं)चरणों के चलने से रुनझुन नूपुर बज रहे हैं । सूरदास (अपने प्रभु का) गुणगान करते हैं - `प्रभो ! आपका यह (भक्त-वात्सल्य) सुयश पृथ्वी और स्वर्गादि में विख्यात हो गया है कि त्रिलोकी के स्वामी (भक्तवत्सलतावश) मक्खन के लिये नाच रहे हैं ।

22:22, 28 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण

जसुमति दधि मथन करति, बैठे बर धाम अजिर, ठाढ़ै हरि हँसत नान्हि दँतियनि छबि छाजै ।
चितवत चित लै चुराइ, सोभा बरनि न जाइ, मनु मुनि-मन-हरन-काज मोहिनी दल साजै ॥
जननि कहति नाचौ तुम, दैहौं नवनीत मोहन ,रुनक-झुनक चलत पाइ, नूपुर-धुनि बाजै ।
गावत गुन सूरदास, बढ्यौ जस भुव-अकास, नाचत त्रैलोकनाथ माखन के काजै ॥

परमश्रेष्ठ नन्दभवन के आँगन में दही मथती हुई श्रीयशोदा जी बैठी हैं । (उनके पास) खड़े श्याम हँस रहे हैं, उनके छोटे-छोटे दाँतों की छटा शोभित हो रही है । देखते ही वह चित्त को चुरा लेती है, उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता, ऐसा लगता है मानो मुनियों का मन हरण करने के लिए मोहिनियों का दल सज्जित हुआ है । मैया कहती हैं- मोहन ! तुम नाचो तो तुम्हें मक्खन दूँगी' (इससे नाचने लगते हैं)चरणों के चलने से रुनझुन नूपुर बज रहे हैं । सूरदास (अपने प्रभु का) गुणगान करते हैं - `प्रभो ! आपका यह (भक्त-वात्सल्य) सुयश पृथ्वी और स्वर्गादि में विख्यात हो गया है कि त्रिलोकी के स्वामी (भक्तवत्सलतावश) मक्खन के लिये नाच रहे हैं ।