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"नंद जू के बारे कान्ह, छाँड़ि दै मथनियाँ / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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सूर स्याम देखि सबै भूली गोप-धनियाँ ॥<br><br>
 
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भावार्थ :-- श्रीनन्दरानी माता यशोदाजी बार-बार कहती हैं - `व्रजराजके लाड़िले कन्हैया ~ मथानी छोड़ तो दे । मेरे प्राणधन (जीवन-सर्वस्व) लाल! तनिक रुक जा ! (मैं तुझे अभी) मक्खन देती हूँ ! मैं कंगालिनी तुझपर बार-बार न्योछावर हूँ, हठ मत कर ।' जिसका देवता, मनुष्य तथा मुनिगण ध्यान किया करते हैं, श्रीनन्दरानी उसीको गोदमें लिये उसका मुख चूम रही हैं ।शेषजी सहस्र मुख से जिसका गुणगान नहीं कर पाते, सूरदासजी कहते हैं कि उसी श्यामसुन्दरको देककर गोप-नारियाँ अपने -आपको भूल गयी हैं ।
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भावार्थ :-- श्रीनन्दरानी माता यशोदा जी बार-बार कहती हैं - `व्रजराज के लाड़ले कन्हैया ~ मथानी छोड़ तो दे । मेरे प्राणधन (जीवन-सर्वस्व) लाल! तनिक रुक जा ! (मैं तुझे अभी) मक्खन देती हूँ ! मैं कंगालिनी तुझ पर बार-बार न्योछावर हूँ, हठ मत कर ।' जिसका देवता, मनुष्य तथा मुनिगण ध्यान किया करते हैं, श्रीनन्दरानी उसी को गोद में लिये उसका मुख चूम रही हैं ।शेष जी सहस्र मुख से जिसका गुणगान नहीं कर पाते, सूरदास जी कहते हैं कि उसी श्यामसुन्दर को देख कर गोप-नारियाँ अपने-आपको भूल गयी हैं ।

20:15, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

राग बिलावल

नंद जू के बारे कान्ह, छाँड़ि दै मथनियाँ ।
बार-बार कहति मातु जसुमति नँदरनियाँ ॥
नैकु रहौ माखन देउँ मेरे प्रान-धनियाँ ।
आरि जनि करौ, बलि-बलि जाउँ हौं निधनियाँ ॥
जाकौ ध्यान धरैं सबै, सुर-नर-मुनि जनियाँ ।
ताकौ नँदरानी मुख चूमै लिए कनियाँ ॥
सेष सहस आनन गुन गावत नहिं बनियाँ ।
सूर स्याम देखि सबै भूली गोप-धनियाँ ॥

भावार्थ :-- श्रीनन्दरानी माता यशोदा जी बार-बार कहती हैं - `व्रजराज के लाड़ले कन्हैया ~ मथानी छोड़ तो दे । मेरे प्राणधन (जीवन-सर्वस्व) लाल! तनिक रुक जा ! (मैं तुझे अभी) मक्खन देती हूँ ! मैं कंगालिनी तुझ पर बार-बार न्योछावर हूँ, हठ मत कर ।' जिसका देवता, मनुष्य तथा मुनिगण ध्यान किया करते हैं, श्रीनन्दरानी उसी को गोद में लिये उसका मुख चूम रही हैं ।शेष जी सहस्र मुख से जिसका गुणगान नहीं कर पाते, सूरदास जी कहते हैं कि उसी श्यामसुन्दर को देख कर गोप-नारियाँ अपने-आपको भूल गयी हैं ।