भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गौरैया / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<Poem>
 
<Poem>
  
नहीं दीखती अब गौरैया
+
नहीं दीखती  
 +
अब गौरैया
 
गाँव-गली-घर या शहरों में
 
गाँव-गली-घर या शहरों में
  
छत-मुँडेर पर, गाँव-खेत में
+
छत-मुँडेर पर,  
 +
गाँव-खेत में
 
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
 
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर, पिंजड़ों में धर
+
पकड़-पकड़ कर,
 +
पिंजड़ों में धर
 
चिड़ियाघर में उसको लाए
 
चिड़ियाघर में उसको लाए
  
सुधिया कभी दिखे ना कोई
+
सुधिया कभी  
आते-जाते इन बहरों में
+
दिखे ना कोई
 +
बुत-से लगते चेहरों में  
  
सहमी-सी बैठी गौरैया
+
सहमी-सी  
 +
बैठी गौरैया
 
टूटे पर अपने सहलाए
 
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है साँसें दुखतीं
+
दम घुटता है  
उड़ जाने की आस लगाए
+
साँसें दुखतीं
 +
उड़ जाने की आस जगाए
  
गोते खाती है छिन-पलछिन
+
गोते खाती है  
 +
छिन-पलछिन
 
अंदर-बाहर की लहरों में
 
अंदर-बाहर की लहरों में
  
दाना भी है, पानी भी है
+
दाना भी है,  
 +
पानी भी है
 
मीठे बोल, रवानी भी है
 
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में सुख कैसा?
+
पराधीनता में
 +
सुख कैसा?
 
बात सभी ने जानी भी है
 
बात सभी ने जानी भी है
  
सभी यहाँ चुप राजा-रानी
+
राजा-रानी,
 +
सभी यहाँ चुप
 
रखकर उसको पहरों में!
 
रखकर उसको पहरों में!
 
</poem>
 
</poem>

13:29, 19 मार्च 2012 के समय का अवतरण


नहीं दीखती
अब गौरैया
गाँव-गली-घर या शहरों में

छत-मुँडेर पर,
गाँव-खेत में
चिड़ीमार ने जाल बिछाए
पकड़-पकड़ कर,
पिंजड़ों में धर
चिड़ियाघर में उसको लाए

सुधिया कभी
दिखे ना कोई
बुत-से लगते चेहरों में

सहमी-सी
बैठी गौरैया
टूटे पर अपने सहलाए
दम घुटता है
साँसें दुखतीं
उड़ जाने की आस जगाए

गोते खाती है
छिन-पलछिन
अंदर-बाहर की लहरों में

दाना भी है,
पानी भी है
मीठे बोल, रवानी भी है
पराधीनता में
सुख कैसा?
बात सभी ने जानी भी है

राजा-रानी,
सभी यहाँ चुप
रखकर उसको पहरों में!