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{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=हवाओं के साज़ पर/ 'अना' क़ासमीकासमी
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'''[['अना ' क़ासमी ]] - एक परिचय'''
[['अना ' क़ासमी]], इस नाम के साथ ज़हन के पर्दे पर एक मुस्कुराता हुआ चेहरा उभरता है। एक भरपूर मौलाना, एक अच्छा शायर, एक नेक और मिलनसार इंसान और साथ ही बेहतरीन दोस्त। [['अना ' क़ासमी ]] की दोस्ती का दायरा इतना फैला हुआ है कि हर समाज और हर दायरे के लोग, हमने इनके दोस्त देखे हैं। शायद इसीलिए इनकी शायरी में तरह-तरह की पीड़ा की टीस और तरह-तरह के सुख का अनुभव देखने को मिलता है। जैसे -
क्या ख़बर कल फिर मिरे अख़बार की होली जले
छतरपुर की गंगा-जमुनी मिज़ाज की हिन्दी और उर्दू के अद्भुत सामंजस्य की मिसाल कायम करने वाली साहित्यिक गोष्ठियों में ‘अना’ क़ासिमी की उपस्थिति हमेशा आवश्यक आवश्यकता की तरह महसूस की जाती है। साहित्य-जगत के ख्यातिलब्ध वरिष्ठ स्थानीय साहित्यकार श्री भैयालाल व्यास (विंध्य-कोकिल) और श्रीनिवास शुक्ल जी भी ‘अना’ क़ासमी की शायरी को नौजवान शायर-कवियों के लिये प्रेरणा का स्त्रोत मानते हैं।
मुझे ये विचार आया कि ‘अना’ साहब के बेपरवाह, या यूं कहें कि मुकम्मल तौर पर शायराना मिज़ाज का साया इनकी ग़ज़लों पर न पड़े और छोटे-छोटे पर्चों एवं पाकिट डायरियों में जमा-खर्च़ की तरह बिखरा अनमोल साहित्य प्रेमियों तक पहुंचने से पहले नष्ट न हो जाए, इसलिए अपना छोटा भाई होने के नाते मैने उन्हें आदेश दिया कि वो ये तमाम ग़ज़ल के पुर्जे़ हमारे हवाले कर दें। और इस तरह ‘अना’’ साहब की ग़ज़लों का संग्रह प्रकाशन की प्रक्रिया में सम्मिलित हुआ। ‘अना’ साहब की शायरी की ज़बान शुद्ध उर्दू है मगर मैने हिन्दी लिपि को उनकी शायरी के प्रसार के लिये उचित जाना और इस काम के लिये उनके सभी घनिष्ठ साहित्यिक मित्रों, नई परंपरा के शायर श्री अज़ीज़ रावी, हिन्दी ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर श्री वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’, जिनका हिन्दी ग़ज़ल-संग्रह इसी प्रकाशन से निकला है, श्रेष्ठ व्यंग्यकार एवं ग़ज़ल की अच्छी सूझ-बूझ रखने वाले श्री संजय खरे ‘संजू’ एवं श्री [रोहित खरे, जिसने अपनी खूबसूरत हस्तलिपि में ‘अना’ क़ासमी की ग़ज़लों को संजोकर मुझे सौंपा, इन सब की प्रबल आकांक्षा एवं सहयोग ने मेरा मार्ग प्रशस्त किया। परिणाम स्वरूप ‘अना’ क़ासमी का यह प्रथम ग़ज़ल-संग्रह आपके हाथों में है।
मैं ‘अना’ क़ासमी की ग़ज़लों पर कोई टिप्पणी नहीं करता, किताब आपके हाथ में है। इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि इस संग्रह के काग़ज का मोल कुछ भी हो, किन्तु इसमंे दर्ज शायरी अनमोल है क्योंकि एक-एक शेर में न जाने कितने अहसास और न जाने कितनी अनमोल, धड़कनें पिरोई गई हैं। बस उन्ही का एक शेर .....
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