भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गिलहरी / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
धागे और ताश के पत्ते | धागे और ताश के पत्ते | ||
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ | सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ | ||
− | अगड़म-बगड़म | + | अगड़म-बगड़म लाती |
− | गिलहरी दिनभर आती- | + | गिलहरी दिनभर आती-जाती। |
ठीक रसोईघर के पीछे | ठीक रसोईघर के पीछे | ||
शीशे की खिड़की के नीचे | शीशे की खिड़की के नीचे | ||
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर | `एस्किमो' सा गोल-गोल घर | ||
− | चुन-चुन खूब | + | चुन-चुन खूब बनाती |
− | गिलहरी दिनभर आती- | + | गिलहरी दिनभर आती-जाती। |
− | + | ||
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे | दो बच्चे हैं छोटे-छोटे | ||
ठीक अँगूठे जिनते मोटे | ठीक अँगूठे जिनते मोटे | ||
बड़े प्यार से उन दोनों को | बड़े प्यार से उन दोनों को | ||
− | अपना दूध | + | अपना दूध पिलाती |
− | गिलहरी दिनभर आती- | + | गिलहरी दिनभर आती-जाती। |
− | + | ||
− | + | ||
खिड़की पर जब कौआ आता | खिड़की पर जब कौआ आता | ||
− | |||
बच्चे खाने को ललचाता | बच्चे खाने को ललचाता | ||
− | |||
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक् | पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक् | ||
− | + | करके उसे डराती | |
− | करके उसे | + | गिलहरी दिनभर आती-जाती। |
− | + | ||
− | गिलहरी दिनभर आती- | + | |
− | + | ||
− | + | ||
भोली-भाली बहुत लजीली | भोली-भाली बहुत लजीली | ||
− | |||
छोटी-सी प्यारी शरमीली | छोटी-सी प्यारी शरमीली | ||
− | |||
देर तलक शीशे से चिपकी | देर तलक शीशे से चिपकी | ||
+ | बच्चों से बतलाती | ||
+ | गिलहरी दिनभर आती-जाती। | ||
− | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
10:00, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
गिलहरी दिन भर आती-जाती
फटे-पुराने कपड़े लत्ते
धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
ठीक रसोईघर के पीछे
शीशे की खिड़की के नीचे
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर
चुन-चुन खूब बनाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
ठीक अँगूठे जिनते मोटे
बड़े प्यार से उन दोनों को
अपना दूध पिलाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
खिड़की पर जब कौआ आता
बच्चे खाने को ललचाता
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
करके उसे डराती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
भोली-भाली बहुत लजीली
छोटी-सी प्यारी शरमीली
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतलाती
गिलहरी दिनभर आती-जाती।
-डॅा. जगदीश व्योम