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+ | सुख पराया | ||
+ | दुःख मेरे अपने | ||
+ | साथ निभाते | ||
+ | सहचर बनाया | ||
+ | सदा गले लगाया | ||
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+ | बनाने बैठी | ||
+ | ज़ख्मों की फ़ेहरिस्त | ||
+ | बनती कैसे | ||
+ | आँसू बहते रहे | ||
+ | हाथ काँपते रहे | ||
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+ | कैसा इनाम | ||
+ | इतनी बड़ी सज़ा | ||
+ | आई न कज़ा | ||
+ | जीवन हुआ सूना | ||
+ | दुःख सहस्र गुना | ||
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+ | गहरी काली | ||
+ | पगलाई दीवाली | ||
+ | सूना आँचल | ||
+ | सारे दीये बुझा के | ||
+ | रोती है मतवाली | ||
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+ | कोई दो जन | ||
+ | कभी साथ न जाते | ||
+ | धैर्य न पाते | ||
+ | अकेले रह गए | ||
+ | मौत से छले गये | ||
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+ | पिरोया तुम्हें | ||
+ | साँसों की सुमरिनी | ||
+ | सदा के लिए | ||
+ | जपती ही रहूँगी | ||
+ | रटूँ एक ही नाम | ||
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+ | प्रेम की यात्रा | ||
+ | फूलों से शुरू हुई | ||
+ | शोलों पे ख़त्म | ||
+ | उड़ती फिरे राख | ||
+ | सिसकती है यादें | ||
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+ | जिन रास्तों पे | ||
+ | चली तुम्हारे साथ | ||
+ | हाथों में हाथ | ||
+ | समय ने चुराया | ||
+ | बहुत भटकाया | ||
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+ | ये कैसा घर | ||
+ | बदरँग दीवारें | ||
+ | पर्दे धुमैले | ||
+ | खिड़की-दरवाज़े | ||
+ | सब हैं मैले-मैले | ||
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+ | भीगा तकिया | ||
+ | दफ़्न किये हैं ख़्वाब | ||
+ | जाने कितने | ||
+ | दो मुट्ठी भर मिट्टी | ||
+ | कोई आता डालने | ||
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+ | तुम्हे क्या खोया | ||
+ | ज़िन्दगी की स्लेट से | ||
+ | नाम मिटाया | ||
+ | आँसुओं डूब गई | ||
+ | दुःख गले लगाया | ||
+ | |||
+ | ये पेड़ कभी | ||
+ | शाख़ों-पत्तों से भरा | ||
+ | गुलज़ार था | ||
+ | पंछियों का बसेरा | ||
+ | शोर का त्योहार था | ||
+ | |||
+ | फूलों की चोरी | ||
+ | किसने कर डाली | ||
+ | रोए मालिन | ||
+ | चमन हुआ ख़ाली | ||
+ | वीरानी औ’ कंगाली | ||
+ | |||
+ | सुख छलावा | ||
+ | कब किसका हुआ | ||
+ | आया, लो, गया | ||
+ | दुःख का जो गीत है | ||
+ | आत्मा में सदा बजे | ||
+ | |||
+ | माला तो बनी | ||
+ | सुगन्ध भी थी घनी | ||
+ | कोई न आया | ||
+ | न किसी ने पहनी | ||
+ | सूखी, धूल में पड़ी | ||
+ | |||
+ | जो खो गया, वो | ||
+ | कभी नहीं मिलता | ||
+ | लाख कोशिश | ||
+ | शाख़ से टूटा गुंचा | ||
+ | कभी नहीं खिलता | ||
+ | |||
+ | कैसे बचती | ||
+ | रेत पे खिली तूने | ||
+ | जो इबारत | ||
+ | हवा की शोख़ियाँ थीं | ||
+ | पानी की मनमानी! | ||
+ | |||
+ | नाव खे माँझी | ||
+ | हाथ ले पतवार | ||
+ | गा ऐसा गीत | ||
+ | सब के लिये प्रीत | ||
+ | जाना है उस पार | ||
+ | |||
+ | एकाकी मन | ||
+ | यात्रा पर अकेला | ||
+ | मत घबरा | ||
+ | साँझ, सभी तो लौटें | ||
+ | चलाचली की बेला | ||
+ | |||
+ | मुठ्ठी खोल दे | ||
+ | जो भी संचित किया | ||
+ | सब छूटेगा | ||
+ | प्रेम, ध्ृणा, विद्वेष | ||
+ | ख़त्म सब झमेला | ||
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21:34, 6 जुलाई 2012 के समय का अवतरण
सुख पराया
दुःख मेरे अपने
साथ निभाते
सहचर बनाया
सदा गले लगाया
बनाने बैठी
ज़ख्मों की फ़ेहरिस्त
बनती कैसे
आँसू बहते रहे
हाथ काँपते रहे
कैसा इनाम
इतनी बड़ी सज़ा
आई न कज़ा
जीवन हुआ सूना
दुःख सहस्र गुना
गहरी काली
पगलाई दीवाली
सूना आँचल
सारे दीये बुझा के
रोती है मतवाली
कोई दो जन
कभी साथ न जाते
धैर्य न पाते
अकेले रह गए
मौत से छले गये
पिरोया तुम्हें
साँसों की सुमरिनी
सदा के लिए
जपती ही रहूँगी
रटूँ एक ही नाम
प्रेम की यात्रा
फूलों से शुरू हुई
शोलों पे ख़त्म
उड़ती फिरे राख
सिसकती है यादें
जिन रास्तों पे
चली तुम्हारे साथ
हाथों में हाथ
समय ने चुराया
बहुत भटकाया
ये कैसा घर
बदरँग दीवारें
पर्दे धुमैले
खिड़की-दरवाज़े
सब हैं मैले-मैले
भीगा तकिया
दफ़्न किये हैं ख़्वाब
जाने कितने
दो मुट्ठी भर मिट्टी
कोई आता डालने
तुम्हे क्या खोया
ज़िन्दगी की स्लेट से
नाम मिटाया
आँसुओं डूब गई
दुःख गले लगाया
ये पेड़ कभी
शाख़ों-पत्तों से भरा
गुलज़ार था
पंछियों का बसेरा
शोर का त्योहार था
फूलों की चोरी
किसने कर डाली
रोए मालिन
चमन हुआ ख़ाली
वीरानी औ’ कंगाली
सुख छलावा
कब किसका हुआ
आया, लो, गया
दुःख का जो गीत है
आत्मा में सदा बजे
माला तो बनी
सुगन्ध भी थी घनी
कोई न आया
न किसी ने पहनी
सूखी, धूल में पड़ी
जो खो गया, वो
कभी नहीं मिलता
लाख कोशिश
शाख़ से टूटा गुंचा
कभी नहीं खिलता
कैसे बचती
रेत पे खिली तूने
जो इबारत
हवा की शोख़ियाँ थीं
पानी की मनमानी!
नाव खे माँझी
हाथ ले पतवार
गा ऐसा गीत
सब के लिये प्रीत
जाना है उस पार
एकाकी मन
यात्रा पर अकेला
मत घबरा
साँझ, सभी तो लौटें
चलाचली की बेला
मुठ्ठी खोल दे
जो भी संचित किया
सब छूटेगा
प्रेम, ध्ृणा, विद्वेष
ख़त्म सब झमेला
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