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पतझरों की मार से हैं | पतझरों की मार से हैं | ||
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मारतीं थप्पड़ हवाएं | मारतीं थप्पड़ हवाएं | ||
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हरी टहनी थरथराए | हरी टहनी थरथराए | ||
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पीलिया से ग्रस्त लगते | पीलिया से ग्रस्त लगते | ||
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हरे पत्ते | हरे पत्ते | ||
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है न कोई जान इसमें | है न कोई जान इसमें | ||
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फूटती कोंपल न जिसमें | फूटती कोंपल न जिसमें | ||
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जिन्दगी के रंग से हैं | जिन्दगी के रंग से हैं | ||
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परे पत्ते | परे पत्ते | ||
रूप, रस, स्पर्श खोए | रूप, रस, स्पर्श खोए | ||
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गन्ध सिहाने न सोए | गन्ध सिहाने न सोए | ||
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हैं बनैले जानवर के | हैं बनैले जानवर के | ||
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चरे पत्ते | चरे पत्ते | ||
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अगर सावन बरस जाए | अगर सावन बरस जाए | ||
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नेह-जल से परस जाए | नेह-जल से परस जाए | ||
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जी उठेंगे; हैं अभी | जी उठेंगे; हैं अभी | ||
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अधमरे पत्ते। | अधमरे पत्ते। | ||
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दरख्तों पर पतझर | दरख्तों पर पतझर | ||
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घुला हवा में कितना तेज जहर | घुला हवा में कितना तेज जहर | ||
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यह पहचानो | यह पहचानो | ||
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किसने खिले गुलाबों से | किसने खिले गुलाबों से | ||
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उसकी निकहत छीनी | उसकी निकहत छीनी | ||
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सपनीली आँखों से सपनों की दौलत छीनी | सपनीली आँखों से सपनों की दौलत छीनी | ||
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किसने लिखना दरख्तों पर पतझर | किसने लिखना दरख्तों पर पतझर | ||
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यह पहचानो | यह पहचानो | ||
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कौन हमारे अहसासों को | कौन हमारे अहसासों को | ||
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कुन्द बनाता है | कुन्द बनाता है | ||
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खौल रहे जल से घावों की जलन मिटाता है | खौल रहे जल से घावों की जलन मिटाता है | ||
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नोच रहा है कौन बया के पर | नोच रहा है कौन बया के पर | ||
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यह पहचानो | यह पहचानो | ||
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खेतों के दृग में कितना | खेतों के दृग में कितना | ||
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आतंक समाया है | आतंक समाया है | ||
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आनेवाले कल का चेहरा क्यों ठिसुआया है | आनेवाले कल का चेहरा क्यों ठिसुआया है | ||
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किसकी नजर चढ़े गीतों के स्वर | किसकी नजर चढ़े गीतों के स्वर | ||
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यह पहचानो। | यह पहचानो। | ||
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बहन का पत्र | बहन का पत्र | ||
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कुशल-क्षेम से | कुशल-क्षेम से | ||
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पिया-गेह में | पिया-गेह में | ||
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बहन तुम्हारी है | बहन तुम्हारी है | ||
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सुबह | सुबह | ||
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सास की झिड़की | सास की झिड़की | ||
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वदन झिंझोड़ जगाती है | वदन झिंझोड़ जगाती है | ||
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और ननद की | और ननद की | ||
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जली-कटी | जली-कटी | ||
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नश्तरें चुभाती है | नश्तरें चुभाती है | ||
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पूज्य ससुर की | पूज्य ससुर की | ||
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आँखों की | आँखों की | ||
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बढ़ गयी खुमारी है | बढ़ गयी खुमारी है | ||
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नहीं हाथ में | नहीं हाथ में | ||
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मेहंदी | मेहंदी | ||
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झाडू, चूल्हा-चौका है | झाडू, चूल्हा-चौका है | ||
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देवर रहा तलाश | देवर रहा तलाश | ||
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निगल जाने का | निगल जाने का | ||
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मौका है | मौका है | ||
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और जेठ की | और जेठ की | ||
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जिह्वा पर भी रखी | जिह्वा पर भी रखी | ||
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दुधारी है | दुधारी है | ||
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पति परमेश्वर | पति परमेश्वर | ||
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सिर्फ चाहता | सिर्फ चाहता | ||
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खाना गोस्त गरम | खाना गोस्त गरम | ||
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और पड़ोसिन के घर | और पड़ोसिन के घर | ||
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लेती है | लेती है | ||
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अफवाह जनम | अफवाह जनम | ||
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करमजली होती | करमजली होती | ||
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शायद | शायद | ||
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दुखियारी नारी है | दुखियारी नारी है | ||
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कई लाख लेकर भी | कई लाख लेकर भी | ||
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गया बनाया | गया बनाया | ||
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दासी है | दासी है | ||
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और लिखी | और लिखी | ||
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किस्मत में शायद | किस्मत में शायद | ||
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गहन उदासी है | गहन उदासी है | ||
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नहीं सहूंगी- | नहीं सहूंगी- | ||
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अब दुख की भर गयी | अब दुख की भर गयी | ||
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तगारी है। | तगारी है। |
17:58, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
रंग से परे
झरे पत्ते
पतझरों की मार से हैं
डरे पत्ते
मारतीं थप्पड़ हवाएं
हरी टहनी थरथराए
पीलिया से ग्रस्त लगते
हरे पत्ते
है न कोई जान इसमें
फूटती कोंपल न जिसमें
जिन्दगी के रंग से हैं
परे पत्ते
रूप, रस, स्पर्श खोए
गन्ध सिहाने न सोए
हैं बनैले जानवर के
चरे पत्ते
अगर सावन बरस जाए
नेह-जल से परस जाए
जी उठेंगे; हैं अभी
अधमरे पत्ते।
दरख्तों पर पतझर
घुला हवा में कितना तेज जहर
यह पहचानो
किसने खिले गुलाबों से
उसकी निकहत छीनी
सपनीली आँखों से सपनों की दौलत छीनी
किसने लिखना दरख्तों पर पतझर
यह पहचानो
कौन हमारे अहसासों को
कुन्द बनाता है
खौल रहे जल से घावों की जलन मिटाता है
नोच रहा है कौन बया के पर
यह पहचानो
खेतों के दृग में कितना
आतंक समाया है
आनेवाले कल का चेहरा क्यों ठिसुआया है
किसकी नजर चढ़े गीतों के स्वर
यह पहचानो।
बहन का पत्र
कुशल-क्षेम से
पिया-गेह में
बहन तुम्हारी है
सुबह
सास की झिड़की
वदन झिंझोड़ जगाती है
और ननद की
जली-कटी
नश्तरें चुभाती है
पूज्य ससुर की
आँखों की
बढ़ गयी खुमारी है
नहीं हाथ में
मेहंदी
झाडू, चूल्हा-चौका है
देवर रहा तलाश
निगल जाने का
मौका है
और जेठ की
जिह्वा पर भी रखी
दुधारी है
पति परमेश्वर
सिर्फ चाहता
खाना गोस्त गरम
और पड़ोसिन के घर
लेती है
अफवाह जनम
करमजली होती
शायद
दुखियारी नारी है
कई लाख लेकर भी
गया बनाया
दासी है
और लिखी
किस्मत में शायद
गहन उदासी है
नहीं सहूंगी-
अब दुख की भर गयी
तगारी है।