भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अनाम गंध (हाइकु) / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
आदमी बने रहो
 
आदमी बने रहो
 
यही बहुत ।
 
यही बहुत ।
 +
 +
 +
नहीं पनपा
 +
बरगदी छाँव में
 +
कभी पादप।
  
 
</poem>
 
</poem>

09:13, 4 जून 2012 के समय का अवतरण

( हाइकु )

अनाम गंध
बिखेर रही हवा
धान के खेत ।


देवता नहीं
आदमी बने रहो
यही बहुत ।


नहीं पनपा
बरगदी छाँव में
कभी पादप।