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"तब तैं बाँदे ऊखल आनि / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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राग धनाश्री  
 
राग धनाश्री  
  
तब तैं बाँदे ऊखल आनि ।
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तब तैं बाँदे ऊखल आनि ।<br>
बालमुकुंददहि कत तरसावति, अति कोमल अँग जानि ॥
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बालमुकुंददहि कत तरसावति, अति कोमल अँग जानि ॥<br>
प्रातकाल तैं बाँधे मोहन, तरनि चढ़यौ मधि आनि ।
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प्रातकाल तैं बाँधे मोहन, तरनि चढ़यौ मधि आनि ।<br>
कुम्हिलानौ मुख-चंद दिखावति, देखौं धौं नँदरानि ॥
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कुम्हिलानौ मुख-चंद दिखावति, देखौं धौं नँदरानि ॥<br>
तेरे त्रास तैं कोउ न छोरत, अब छोरौं तुम आनि ।
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तेरे त्रास तैं कोउ न छोरत, अब छोरौं तुम आनि ।<br>
कमल-नैन बाँधेही छाँड़े, तू बैठी मनमानि ॥
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कमल-नैन बाँधेही छाँड़े, तू बैठी मनमानि ॥<br>
जसुमति के मन के सुख कारन आपु बँधावत पानि ।
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जसुमति के मन के सुख कारन आपु बँधावत पानि ।<br>
जमलार्जुन कौं मुक्त करन हित, सूर स्याम जिय ठानि ॥
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जमलार्जुन कौं मुक्त करन हित, सूर स्याम जिय ठानि ॥<br><br>
  
 
भावार्थ :--`तभी से लाकर तुमने कन्हैया को ऊखल में बाँध दिया है । यह जानकर (भी) कि बाल-मुकुन्द का शरीर अत्यन्त कोमल है इन्हें क्यों तरसाती (पीड़ा देती) हो? मोहन को तुमने सबेरे से ही बाँध रखा है और अब तो सूर्य मध्य आकाश में आ चढ़ा (दोपहर हो गया) है ।' (इस प्रकार गोपी) मलिन हुए चन्द्रमुख को दिखलाती हुई कहती है कि--`तनिक देखो तो नन्दरानी ! तुम्हारे भय से कोई इन्हें खोलता नहीं, अब तुम्हीं आकर खोल दो । कमललोचन को बँधा ही छोड़कर तुम मनमाने ढ़ंग से बैठी हौ ।' सूरदास जी कहते हैं, श्यामसुन्दर ने यमलार्जुन को मुक्त करने का मन में निश्चय करके यशोदा जी के चित्त को सुख देने के लिये स्वयं (अपने) हाथ बँधवा लिये हैं ।' (नहीं तो इन्हें कोई कैसे बाँध सकता है ।)
 
भावार्थ :--`तभी से लाकर तुमने कन्हैया को ऊखल में बाँध दिया है । यह जानकर (भी) कि बाल-मुकुन्द का शरीर अत्यन्त कोमल है इन्हें क्यों तरसाती (पीड़ा देती) हो? मोहन को तुमने सबेरे से ही बाँध रखा है और अब तो सूर्य मध्य आकाश में आ चढ़ा (दोपहर हो गया) है ।' (इस प्रकार गोपी) मलिन हुए चन्द्रमुख को दिखलाती हुई कहती है कि--`तनिक देखो तो नन्दरानी ! तुम्हारे भय से कोई इन्हें खोलता नहीं, अब तुम्हीं आकर खोल दो । कमललोचन को बँधा ही छोड़कर तुम मनमाने ढ़ंग से बैठी हौ ।' सूरदास जी कहते हैं, श्यामसुन्दर ने यमलार्जुन को मुक्त करने का मन में निश्चय करके यशोदा जी के चित्त को सुख देने के लिये स्वयं (अपने) हाथ बँधवा लिये हैं ।' (नहीं तो इन्हें कोई कैसे बाँध सकता है ।)

19:38, 2 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण

राग धनाश्री

तब तैं बाँदे ऊखल आनि ।
बालमुकुंददहि कत तरसावति, अति कोमल अँग जानि ॥
प्रातकाल तैं बाँधे मोहन, तरनि चढ़यौ मधि आनि ।
कुम्हिलानौ मुख-चंद दिखावति, देखौं धौं नँदरानि ॥
तेरे त्रास तैं कोउ न छोरत, अब छोरौं तुम आनि ।
कमल-नैन बाँधेही छाँड़े, तू बैठी मनमानि ॥
जसुमति के मन के सुख कारन आपु बँधावत पानि ।
जमलार्जुन कौं मुक्त करन हित, सूर स्याम जिय ठानि ॥

भावार्थ :--`तभी से लाकर तुमने कन्हैया को ऊखल में बाँध दिया है । यह जानकर (भी) कि बाल-मुकुन्द का शरीर अत्यन्त कोमल है इन्हें क्यों तरसाती (पीड़ा देती) हो? मोहन को तुमने सबेरे से ही बाँध रखा है और अब तो सूर्य मध्य आकाश में आ चढ़ा (दोपहर हो गया) है ।' (इस प्रकार गोपी) मलिन हुए चन्द्रमुख को दिखलाती हुई कहती है कि--`तनिक देखो तो नन्दरानी ! तुम्हारे भय से कोई इन्हें खोलता नहीं, अब तुम्हीं आकर खोल दो । कमललोचन को बँधा ही छोड़कर तुम मनमाने ढ़ंग से बैठी हौ ।' सूरदास जी कहते हैं, श्यामसुन्दर ने यमलार्जुन को मुक्त करने का मन में निश्चय करके यशोदा जी के चित्त को सुख देने के लिये स्वयं (अपने) हाथ बँधवा लिये हैं ।' (नहीं तो इन्हें कोई कैसे बाँध सकता है ।)