भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैया मैं नहीं माखन खायौ / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥<br> ख्याल परै ये सखा स...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=सूरदास
 
|रचनाकार=सूरदास
 
}}  
 
}}  
 +
 +
 +
राग रामकली
 +
  
 
मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥<br>
 
मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥<br>

22:28, 2 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण


राग रामकली


मैया मैं नहीं माखन खायौ ॥
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि, मेरैं मुख लपटायौ ॥
देखि तुही सींके पर भाजन, ऊँचैं धरि लटकायौ ॥
हौं जु कहत नान्हे कर अपनैं मैं कैसैं करि पायौ ॥
मुख दधि पोंछि, बुद्धि इक कीन्हीं, दोना पीठि दुरायौ ॥
डारि साँटि, मुसुकाइ जसोदा, स्यामहि कंठ लगायौ ॥
बाल-बिनोद-मोद मन मोह्यौ, भक्ति -प्रताप दिखायौ ॥
सूरदास जसुमति कौ यह सुख, सिव बिरंचि नहिं पायौ ॥

भावार्थ :-- (श्यामसुन्दर बोले-) `मैया ! मैंने मक्खन नहीं खाया है ॥ ये सब सखा मेरी हँसी कराने पर उतारू हैं, इन्होंने उसे मेरे (ही) मुखमें लिपटा दिया तू ही देख ! बर्तन तो छींके पर रखकर ऊँचाई पर लटकाये हुए थे, मैं कहता हूँ कि अपने नन्हें हाथों से मैंने उन्हें कैसे पा लिया ? यों कहकर मुख में लगा दही मोहन ने पोंछ डाला तथा एक चतुरता की (मक्खन भरा) दोना पीछे छिपा दिया ॥ माता यशोदा ने (पुत्र की बात सुनकर) छड़ी रख दी और मुसकराकर श्यामसुन्दर को गले लगा लिया ॥ सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने अपने बाल-विनोद के आनन्द से माता के मन को मोहित कर लिया. (इस बालक्रीड़ा तथा माता से डरने में) उन्होंने भक्ति का प्रताप दिखलाया ॥ श्रीयशोदा जी को जो यह (श्याम के बाल-विनोद का) आनन्द मिल रहा है, उसे तो शंकर जी और ब्रह्मा जी (भी) नहीं पा सके ॥