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"गवनहार आजी / केशव तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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पूरे बारह गांव में
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पूरे बारह गाँव में
 
आजी जैसी गवनहार नही थी
 
आजी जैसी गवनहार नही थी
मां का भी नाम
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माँ का भी नाम
एक दो गांव तक था
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एक दो गाँव तक था
बडी बूढीयां कहती थी कि
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बडी बूढ़ियाँ कहती थी कि
 
मछली को ही अपना गला
 
मछली को ही अपना गला
सौप कर गयी थी आजी
+
सौप कर गई थी आजी
पर एक फर्क था
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पर एक फ़र्क था
मां और आजी के बीच
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माँ और आजी के बीच
 
आजी के जो गीतो में था
 
आजी के जो गीतो में था
 
वह उनके जीवन में भी था
 
वह उनके जीवन में भी था
मां के जो गीतो मे था
+
माँ के जो गीतो मे था
 
वह उनके जीवन से
 
वह उनके जीवन से
धीरे धीरे छिटक रहा था
+
धीरे-धीरे छिटक रहा था
उस सब के लिये
+
उस सब के लिए
 
जीवन भर मोह बना रहा उनमें
 
जीवन भर मोह बना रहा उनमें
जांत नही रह गये थे पर
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जांत नही रह गए थे पर
जतसर में तुरंत पिसे  
+
जतसर में तुरन्त पिसे  
गेंहू की महक बाकी थी
+
गेंहू की महक बाक़ी थी
 
एक भी रंगरेज नही बचे थे
 
एक भी रंगरेज नही बचे थे
 
पर केसर रंग धोती  
 
पर केसर रंग धोती  
 
रंगाऊ मोरे राजा का आग्रह बना रहा
 
रंगाऊ मोरे राजा का आग्रह बना रहा
कुअें कूडेदानो मे तब्दील  हो गये थे
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कुएँ कू्ड़ेदानो मे तब्दील  हो गए थे
 
पर सोने की गघरी और रेशम की डोरी
 
पर सोने की गघरी और रेशम की डोरी
 
के बिना एक भी सोहर
 
के बिना एक भी सोहर
 
पूरा नही हुआ
 
पूरा नही हुआ
बीता बीता जमीन बंट चुकी थी
+
बीता-बीता ज़मीन बँट चुकी थी
भाइयों भाइयेां के रिश्तो मे  
+
भाइयों-भाइयेां के रिश्तो मे  
खटास आ गयी थी
+
खटास आ गई थी
फिर भी जेठ से अपने
+
फिर भी जेठ से अपनी
झुलने के लिये
+
झुलनी के लिए
जमीन बेच देने की टेक नही गयी
+
ज़मीन बेच देने की टेक नही गई
मां के गीतो से सुन कर लगता था
+
माँ के गीतो को सुन कर लगता था
जैसे कोई तेजी से सरकती गीली रस्सी
+
जैसे कोई तेज़ी से सरकती गीली रस्सी को
को भीगे हाथो से पकडने की  
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भीगे हाथो से पकड़ने की कोशिश कर रहा है।             
कोशिश कर रहा है।             
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13:35, 4 जून 2016 के समय का अवतरण

पूरे बारह गाँव में
आजी जैसी गवनहार नही थी
माँ का भी नाम
एक दो गाँव तक था
बडी बूढ़ियाँ कहती थी कि
मछली को ही अपना गला
सौप कर गई थी आजी
पर एक फ़र्क था
माँ और आजी के बीच
आजी के जो गीतो में था
वह उनके जीवन में भी था
माँ के जो गीतो मे था
वह उनके जीवन से
धीरे-धीरे छिटक रहा था
उस सब के लिए
जीवन भर मोह बना रहा उनमें
जांत नही रह गए थे पर
जतसर में तुरन्त पिसे
गेंहू की महक बाक़ी थी
एक भी रंगरेज नही बचे थे
पर केसर रंग धोती
रंगाऊ मोरे राजा का आग्रह बना रहा
कुएँ कू्ड़ेदानो मे तब्दील हो गए थे
पर सोने की गघरी और रेशम की डोरी
के बिना एक भी सोहर
पूरा नही हुआ
बीता-बीता ज़मीन बँट चुकी थी
भाइयों-भाइयेां के रिश्तो मे
खटास आ गई थी
फिर भी जेठ से अपनी
झुलनी के लिए
ज़मीन बेच देने की टेक नही गई
माँ के गीतो को सुन कर लगता था
जैसे कोई तेज़ी से सरकती गीली रस्सी को
भीगे हाथो से पकड़ने की कोशिश कर रहा है।