भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निसिदिन बरसत नैन हमारे / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: कवि: सूरदास Category:कविताएँ Category:सूरदास निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत ...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[सूरदास]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:सूरदास]]
+
|रचनाकार=सूरदास
 
+
}}
 +
[[Category:पद]]
  
 +
<poem>
 
निसिदिन बरसत नैन हमारे।
 
निसिदिन बरसत नैन हमारे।
 
 
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
 
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
 
 
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
 
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
 
 
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
 
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
 
 
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
 
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
 
 
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥
 
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥
 +
</poem>

15:55, 23 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥