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"खोने को हैं बेताब( हाइकु) /रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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− | भागती फिर रही | + | भागती फिर रही |
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− | ६- आसमां झुक | + | ६- आसमां झुक |
− | धरा से कहता ये | + | धरा से कहता ये |
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11:03, 22 जून 2012 के समय का अवतरण
१- ढोती है रात
मनुज की पीडाएं
भोर की आस |
२- मुखौटे लगा
खोने को हैं बेताब
चैटिंग – यार |
३- हैं अनजान
अडोस-पड़ोस से
सर्फिंग -प्यार |
४- ऊषा मुस्काई
भौंरे गुनगुनाए
ताजगी आई |
५- आँगन धूप
भागती फिर रही
छत-मुडेर |
६- आसमां झुक
धरा से कहता ये
तुझ से ही मैं |