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"हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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यह पगली फिर भी अब तक ख़ुद को शहज़ादी बताती है<br><br>
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जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
  
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जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है<br><br>
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अभी फ़‍िरक़ापरस्‍ती कम है आबादी बताती है<br><br>
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यहां से नफ़रतें गुज़री है बरबादी बताती है<br><br>
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लहू कैसे बहाया जाय यह लीडर बताते हैं<br>
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ग़ुलामी ने अभी तक मुल्‍क का पीछा नहीं छोड़ा
लहू का ज़ायक़ा कैसा है यह खादी बताती है<br><br>
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हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है
  
ग़ुलामी ने अभी तक मुल्‍क का पीछा नहीं छोड़ा<br>
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ग़रीबी क्‍यों हमारे शहर से बाहर नहीं जाती
हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है<br><br>
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अमीर-ए-शहर के घर की हर इक शादी बताती है
  
ग़रीबी क्‍यों हमारे शहर से बाहर नहीं जाती<br>
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मैं उन आँखों के मयख़ाने में थोड़ी देर बैठा था
अमीर-ए-शहर के घर की हर एक शादी बताती है<br><br>
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मुझे दुनिया नशे का आज तक आदी बताती है
 
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मुझे दुनिया नशे का आज तक आदी बताती है<br><br>
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21:24, 23 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

हर एक आवाज़ अब उर्दू को फ़रियादी बताती है
यह पगली फिर भी अब तक ख़ुद को शहज़ादी बताती है

कई बातें मुहब्‍बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है

जहाँ पिछले कई बरसों से काले नाग रहते हैं
वहाँ एक घोंसला चि‍ड़‍ियों का था दादी बताती है

अभी तक यह इलाक़ा है रवादारी के क़ब्‍ज़े में
अभी फ़‍िरक़ापरस्‍ती कम है आबादी बताती है

यहाँ वीरानियों की एक मुद्दत से हुकूमत है
यहाँ से नफ़रतें गुज़री है बरबादी बताती है

लहू कैसे बहाया जाय यह लीडर बताते हैं
लहू का ज़ायक़ा कैसा है यह खादी बताती है

ग़ुलामी ने अभी तक मुल्‍क का पीछा नहीं छोड़ा
हमें फिर क़ैद होना है ये आज़ादी बताती है

ग़रीबी क्‍यों हमारे शहर से बाहर नहीं जाती
अमीर-ए-शहर के घर की हर इक शादी बताती है

मैं उन आँखों के मयख़ाने में थोड़ी देर बैठा था
मुझे दुनिया नशे का आज तक आदी बताती है