"कहां लौं कहिए ब्रज की बात / सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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कहां लौं कहिए ब्रज की बात। | कहां लौं कहिए ब्रज की बात। | ||
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सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥ | सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥ | ||
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गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात। | गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात। | ||
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परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥ | परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥ | ||
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जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब कुसलात। | जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब कुसलात। | ||
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चलन न देत प्रेम आतुर उर, कर चरननि लपटात॥ | चलन न देत प्रेम आतुर उर, कर चरननि लपटात॥ | ||
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पिक चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहिं न खात। | पिक चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहिं न खात। | ||
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सूर, स्याम संदेसनि के डर पथिक न उहिं मग जात॥ | सूर, स्याम संदेसनि के डर पथिक न उहिं मग जात॥ | ||
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यह शकुन माना जाता है। पर अब कोए भी वहां जाना पसंद नहीं करते। वे बलि की तरफ | यह शकुन माना जाता है। पर अब कोए भी वहां जाना पसंद नहीं करते। वे बलि की तरफ | ||
देखते भी नहीं। यह शकुन भी असत्य हो गया। | देखते भी नहीं। यह शकुन भी असत्य हो गया। | ||
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15:03, 22 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
राग गोरी
कहां लौं कहिए ब्रज की बात।
सुनहु स्याम, तुम बिनु उन लोगनि जैसें दिवस बिहात॥
गोपी गाइ ग्वाल गोसुत वै मलिन बदन कृसगात।
परमदीन जनु सिसिर हिमी हत अंबुज गन बिनु पात॥
जो कहुं आवत देखि दूरि तें पूंछत सब कुसलात।
चलन न देत प्रेम आतुर उर, कर चरननि लपटात॥
पिक चातक बन बसन न पावहिं, बायस बलिहिं न खात।
सूर, स्याम संदेसनि के डर पथिक न उहिं मग जात॥
भावार्थ :- `परमदीन...पात,' सारे ब्रजबासी ऐसे श्रीहीन और दीन दिखाई देते है, जैसे
शिशिर के पाले से कमल कुम्हला जाता है और पत्ते उसके झुलस जाते हैं।
`पिक ....पावहिं,' कोमल और पपीहे विरहाग्नि को उत्तेजित करते हैं अतः बेचारे इतने
अधिक कोसे जाते हैं कि उन्होंने वहां बसेरा लेना भी छोड़ दिया है।
`बायस....खात,' कहते हैं कि कौआ घर पर बैठा बोल रहा हो और उसे कुछ खाने को
रख दिया जाय, तो उस दिन अपना कोई प्रिय परिजन या मित्र परदेश से आ जाता है।
यह शकुन माना जाता है। पर अब कोए भी वहां जाना पसंद नहीं करते। वे बलि की तरफ
देखते भी नहीं। यह शकुन भी असत्य हो गया।
शब्दार्थ :- विहात =बीतते हैं। मलिन बदन = उदास। सिसिर हिमी हत = शिशिर ऋतु के
पाले से मारे हुए। बिनु पात = बिना पत्ते के। कुसलात = कुशल-क्षेम। बायस =कौआ।
बलि भोजन का भाग।