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+ | कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी। | ||
+ | एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।। | ||
+ | छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी। | ||
+ | अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।। | ||
+ | संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी। | ||
+ | दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।। | ||
+ | भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी। | ||
+ | हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।। | ||
− | + | [नागार्जुन का अनुवाद : कुंज भवन से निकली ही थी कि गिरधारी ने रोक लिया। माधव, बटमारी मत करो, हम एक ही नगर के रहने वाले हैं। कान्हा, आंचल छोड़ दो। मेरी साड़ी अभी नयी नयी है, फट जाएगी। छोड़ दो। दुनिया में बदनामी फैलेगी। मुझे नंगी मत करो। साथ की सहेलियां आगे बढ़ गयी हैं। मैं अकेली हूं। एक तो रात ही अंधेरी है, उस पर बिजली भी कौंधने लगी - हाय, अब मैं क्या करूं? विद्यापति ने कहा, तुम तो बड़ी गुणवती हो। हरि से भला क्या डरना। तुम गंवार हो। गंवार न होती तो हरि से भला क्यों डरती...] | |
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13:12, 3 जून 2014 के समय का अवतरण
कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।
[नागार्जुन का अनुवाद : कुंज भवन से निकली ही थी कि गिरधारी ने रोक लिया। माधव, बटमारी मत करो, हम एक ही नगर के रहने वाले हैं। कान्हा, आंचल छोड़ दो। मेरी साड़ी अभी नयी नयी है, फट जाएगी। छोड़ दो। दुनिया में बदनामी फैलेगी। मुझे नंगी मत करो। साथ की सहेलियां आगे बढ़ गयी हैं। मैं अकेली हूं। एक तो रात ही अंधेरी है, उस पर बिजली भी कौंधने लगी - हाय, अब मैं क्या करूं? विद्यापति ने कहा, तुम तो बड़ी गुणवती हो। हरि से भला क्या डरना। तुम गंवार हो। गंवार न होती तो हरि से भला क्यों डरती...]