भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐसी एक कविता / अरुण आदित्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण आदित्य |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<poem>
 
<poem>
जिसे टेडी बियर की तरह उचाल-उछाल
+
जिसे टेडी बियर की तरह उछाल-उछाल
 
खेल सके एक बच्चा
 
खेल सके एक बच्चा
 
जिसे बच्चे की किलकारी समझ
 
जिसे बच्चे की किलकारी समझ

22:55, 19 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

जिसे टेडी बियर की तरह उछाल-उछाल
खेल सके एक बच्चा
जिसे बच्चे की किलकारी समझ
हुलस उठे एक माँ

जो प्रतीक्षालय की किसी पुरानी काठ-बेंच की तरह
इतनी खुरदुरी हो, इतनी धूलभरी
कि उसे गमछे से पोछ निःसंकोच
दो घड़ी पीठ टिका सके कोई लस्त बूढ़ा पथिक

जो रणक्षेत्र में घायल सैनिक को याद आए
माँ के दुलार या प्रेयसी के प्यार की तरह
जो योद्ध की तलवार की तरह हो धारदार
जो धार पर रखी हुई गर्दन की तरह हो
ख़ून से सनी, फिर भी तनी
पता नहीं कब लिख सकूँगा ऐसी एक कविता
आज तक तो नहीं बनी ।