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"करघा / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं<br>
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हर ज़िन्दगी एक सूत है
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।<br>
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और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी<br>
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इस उलझन का सुलझाना
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।<br><br>
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हमारे लिये मुहाल है।
  
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से<br>
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मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
इतनी जगहों पर मिलती है<br>
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वह हर सूत की किस्मत को
कि हम कुछ समझ नहीं पाते<br>
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पहचानता है।
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।<br>
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सूत के टेढ़े या सीधे चलने का
संसार संसार नहीं,<br>
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क्या रहस्य है,
बेवकूफ़ियों का मेला है।<br><br>
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बुनकर इसे खूब जानता है।
  
हर ज़िन्दगी एक सूत है<br>
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’हारे को हरिनाम’ संग्रह से
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।<br>
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इस उलझन का सुलझाना<br>
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हमारे लिये मुहाल है ।<br><br>
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मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,<br>
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वह हर सूत की किस्मत को<br>
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पहचानता है।<br>
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सूत के टेढ़े या सीधे चलने का<br>
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क्या रहस्य है,<br>
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बुनकर इसे खूब जानता है।<br>
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’हारे को हरिनाम’ से
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13:47, 27 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

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हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।

ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।

हर ज़िन्दगी एक सूत है
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है।

मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
सूत के टेढ़े या सीधे चलने का
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।

’हारे को हरिनाम’ संग्रह से