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"मेरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मेरे शहर गर्द-ए-मलाल में / 'असअद' बदायुनी" के अवतरणों में अंतर

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मौसम-ए-हिज्र तो दाएम है न रुख़्सत होगा
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मेरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मेरे शहर गर्द-ए-मलाल में
एक ही लम्हे को हो वस्ल ग़नीमत होगा
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अभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा इन उदासियों के ज़वाल में
  
मेरा दिल आख़िरी तारे की तरह है गोया
+
कभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया
डूबना उस का नए दिन की बशारत होगा
+
यूँही उम्र सारी गुज़ार दी फ़क़त आरज़ू-ए-विसाल में
  
अब के हँगामा नई तरह हुआ है आग़ाज़
+
कहीं गर्दिशों के भँवर में हूँ किसी चाक पर मैं चढ़ा हुआ
शहर भी अब के नए तौर से ग़ारत होगा
+
कहीं मेरी ख़ाक जमी हुई किसी दश्त-ए-बर्फ़-मिसाल में
  
शाख़ से टूट के पत्ते ने ये दिल में सोचा
+
ये हवा-ए-ग़म ये फ़ज़ा-ए-नम मुझे ख़ौफ़ है के न डाल दे
कौन इस तरह भला माइल-ए-हिजरत होगा
+
कोई पर्दा मेरी निगाह पर कोई रख़्ना तेरे जमाल में
  
दिल से दुनिया का जो रिश्ता है अजब रिश्ता है
 
हम जो टूटे हैं तो कब शहर सलामत होगा
 
 
बाद-बानों से हवा लग के गले रोती है
 
ये सफ़ीना भी किसी मौज की क़िस्मत होगा
 
 
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07:36, 26 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

मेरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मेरे शहर गर्द-ए-मलाल में
अभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा इन उदासियों के ज़वाल में

कभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गया
यूँही उम्र सारी गुज़ार दी फ़क़त आरज़ू-ए-विसाल में

कहीं गर्दिशों के भँवर में हूँ किसी चाक पर मैं चढ़ा हुआ
कहीं मेरी ख़ाक जमी हुई किसी दश्त-ए-बर्फ़-मिसाल में

ये हवा-ए-ग़म ये फ़ज़ा-ए-नम मुझे ख़ौफ़ है के न डाल दे
कोई पर्दा मेरी निगाह पर कोई रख़्ना तेरे जमाल में