भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घूँघट के पट / कबीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: कवि: कबीर Category:कविताएँ Category:कबीर~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* घूँघट का पट खोल रे,तो...) |
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=कबीर | |
+ | }} | ||
+ | {{KKCatPad}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे। | ||
+ | घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥ | ||
− | + | धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे। | |
− | + | सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।। | |
− | + | जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे। | |
− | + | कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | कह कबीर आनंद भयो है,बाजत अनहद ढोल रे॥ | + |
13:01, 7 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे।
घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥
धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे।
सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।।
जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।
कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥