"शायर की कब्र / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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+ | न वहाँ छतरी थी न घेरा | ||
+ | बस एक क़ब्र थी मिट्टी से उठती | ||
+ | मानों कोई सो गया हो लेटे-लेटे | ||
+ | जिस पर उतनी ही धूप पड़ती जितनी बाकी धरती पर | ||
+ | उतनी ही ओस और बारिश | ||
+ | और दो पेड़ थे आसपास बेरी और नीम के| | ||
− | + | मेमने बच्चे और गौरैया दिन भर कूदते वहाँ | |
− | + | और शाम होते पूरा मुहल्ला जमा हो जाता | |
− | + | तिल के लड्डू गंडे-ताबीज वाले | |
− | + | और डुगडुगी बजाता जमूरा लिए रीछ का बच्चा | |
− | + | और रात को थका मांदा कोई मँगता सो रहता सट कर| | |
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− | और डुगडुगी बजाता जमूरा लिए रीछ का बच्चा | + | |
− | और रात को थका मांदा कोई मँगता सो रहता सट कर| | + | |
− | और वो सब कुछ सुनता | + | और वो सब कुछ सुनता |
− | एक-एक तलवे की धड़कन एक कीड़े की हरकत | + | एक-एक तलवे की धड़कन एक कीड़े की हरकत |
− | हर रेशे का भीतर ख़ाक में सरकना | + | हर रेशे का भीतर ख़ाक में सरकना |
− | और ऊपर उड़ते पतंगों की सिहरन | + | और ऊपर उड़ते पतंगों की सिहरन |
− | हर बधावे हर मातम में शामिल| | + | हर बधावे हर मातम में शामिल| |
− | वह महज़ एक क़ब्र थी एक शायर की क़ब्र | + | वह महज़ एक क़ब्र थी एक शायर की क़ब्र |
− | जहाँ हर बसंत में लगते हैं मेले | + | जहाँ हर बसंत में लगते हैं मेले |
− | जहाँ दो पेड़ हैं पास-पास बेरी के नीम के|< | + | जहाँ दो पेड़ हैं पास-पास बेरी के नीम के| |
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12:10, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
(नज़ीर अक़बराबादी के प्रति)
न वहाँ छतरी थी न घेरा
बस एक क़ब्र थी मिट्टी से उठती
मानों कोई सो गया हो लेटे-लेटे
जिस पर उतनी ही धूप पड़ती जितनी बाकी धरती पर
उतनी ही ओस और बारिश
और दो पेड़ थे आसपास बेरी और नीम के|
मेमने बच्चे और गौरैया दिन भर कूदते वहाँ
और शाम होते पूरा मुहल्ला जमा हो जाता
तिल के लड्डू गंडे-ताबीज वाले
और डुगडुगी बजाता जमूरा लिए रीछ का बच्चा
और रात को थका मांदा कोई मँगता सो रहता सट कर|
और वो सब कुछ सुनता
एक-एक तलवे की धड़कन एक कीड़े की हरकत
हर रेशे का भीतर ख़ाक में सरकना
और ऊपर उड़ते पतंगों की सिहरन
हर बधावे हर मातम में शामिल|
वह महज़ एक क़ब्र थी एक शायर की क़ब्र
जहाँ हर बसंत में लगते हैं मेले
जहाँ दो पेड़ हैं पास-पास बेरी के नीम के|